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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१७८

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जंगले में से निकला था उठा लिया, और बाईं तरफ की दीवार जो चूना और ईंटों से बनी हुई थी, तोड़ने लगे। उस समय ऐयारों ने दोनों भाइयों के हाथ से छड़ ले लिया, और दीवार तोड़ना शुरू किया।

पहर भर की मेहनत से दीवार में इतना बड़ा छेद हो गया कि आदमी उसकी राह बखूबी निकल जाय। भैरोंसिंह ने झाँककर देखा, उस तरफ बिल्कुल अँधेरा था और इस बात का ज्ञान जरा-भी नहीं हो सकता था कि दीवार के दूसरी तरफ क्या है। हम ऊपर लिख आए हैं कि इस कैदखाने में छत के सहारे शीशे की एक कन्दील लटकती थी। इस समय ऐयारों ने उसी कन्दील की रोशनी से काम लेना चाहा। तारासिंह ने भैरोंसिंह के कन्धे पर चढ़कर कन्दील उतार ली और उसे हाथ में लिए हए उस सूराख की राह दूसरी तरफ निकल गये। इनके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग भी गए। अब मालूम हुआ कि यह कोठरी है जो लगभग तीस हाथ के लम्बी और पन्द्रह हाथ से कम चौड़ी है। कुमार तथा ऐयार लोग अगर बिना रोशनी के इस कोठरी में आते तो जरूर दुःख भोगते, क्योंकि यहाँ जमीन बराबर न थी, बीचोंबीच में एक कुआँ था और उसके चारों तरफ जमीन में चार दरवाजे बने हुए थे, जिनके देखने से मालूम होता था कि यहाँ कई तहखाने हैं, और ये दरवाजे नहीं, तहखानों के रास्ते हैं। इस समय उन दरवाजों के पल्ले जो लकड़ी के थे। अच्छी तरह देखने से मालूम हुआ कि नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, और उस कुएँ में भी लोहे की एक जंजीर लटक रही थी। इसके अतिरिक्त चारों तरफ की दीवारें बराबर थीं, अर्थात् किसी तरफ कोई दरवाजा न था, जिसे खोलकर ये लोग बाहर जाने की इच्छा करते।

इन्द्रजीतसिंह––मालूम होता है कि यहाँ आने या यहाँ से जाने के लिए इन तहखानों के सिवाय कोई राह नहीं है।

आनन्दसिंह––मैं भी यही समझता हूँ।

देवीसिंह––इन तहखानों में उतरे बिना काम न चलेगा।

तारासिंह––आज्ञा हो तो मैं रोशनी लेकर एक तहखाने में उतरूँ और देखूँ कि क्या है।

इन्द्रजीतसिंह––खैर, जाओ, कोई हर्ज नहीं।

आज्ञा पाकर तारासिंह एक तहखाने के मुँह पर गये, मगर जब नीचे उतरने लगे तो कुछ देखकर रुक गये। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने रुकने का सबब पूछा। जिसके जवाब में तारासिंह ने कहा, "इस तहखाने में रोशनी मालूम होती है और धीरे-धीरे वह रोशनी तेज होती जाती है। मालूम होता है कि सुरंग है, और कोई आदमी हाथ में बत्ती लिये इसी तरफ आ रहा है।"

दोनों कुमार और ऐयार लोग भी वहाँ गये और झाँककर देखने लगे। थोड़ी देर में दो कमसिन औरतें नजर पड़ीं, जो सीढ़ी के पास आकर ऊपर चढ़ने का इरादा कर रही थीं। एक के हाथ में मोमबत्ती थी, जिसे देखते ही कुमार ने पहचान लिया कि यह कमलिनी है, साथ में लाड़िली भी थी, मगर उसे वे पहचानते न थे। हाँ, जब कैदी बनकर मायारानी के दरबार में लाए गये थे, तो मायारानी की बगल में बैठे हुए