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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१८३

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सहारे से खुलता और बन्द होता है और इसकी कमानी इन दोनों हाथियों के पेट में है, जिस पर दोनों सूँड़ों के दबाने से दबाव पहुँचता है, अस्तु यहाँ ताकत का काम है। इन दोनों सूँड़ों को जोर से साथ यहाँ तक झुकाना और दबाना चाहिए कि दरवाजे के साथ लग जायें। मैं देखना चाहती हूँ कि आपके ऐयारों में कितनी ताकत है।

देवीसिंह––अगर किसी आदमी के झुकाये यह झुक सकता है, तो पहले मुझे उद्योग करने दीजिए।

कमलिनी––आइये-आइये, लीजिये, मैं हट जाती हूँ।

देवीसिंह ने दोनों सूँड़ों पर हाथ रखा और छाती से अड़ाकर जोर किया, मगर एक बित्ते से ज्यादा न दबा सके और दरवाजा दो हाथ की दूरी पर था, इसलिए दो हाथ दबाकर ले जाने की आवश्यकता थी। आखिर देवीसिंह यह कहते हुए पीछे हटे, "यह राक्षसी काम है।"

इसके बाद और ऐयारों ने भी जोर किया, मगर देवीसिंह से ज्यादा कान न कर सके। तब कमलिनी कुमारों की तरफ देखकर हँसी और बोली, "सिवाय आप दोनों के यह काम किसी तीसरे से न हो सकेगा!"

आनन्दसिंह––(इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखकर) यदि आज्ञा हो तो मैं भी जोर करूँ?

इन्द्रजीतसिंह––क्या हर्ज है, तुम यह काम बखूबी कर सकते हो!

आज्ञा पाते ही कुँअर आनन्दसिंह ने दोनों सूँड़ों पर हाथ रख के जोर किया और पहले ही जोर में दरवाजे के साथ लगा दिया। यह हाल देखते ही लाड़िली ने जोश में आकर कहा, "वाह-वाह! कैद की मुसीबत उठाकर कमजोर होने पर भी यह हाल है!"

दरवाजे के साथ सूँड़ों का लगना था कि हाथियों के चिंघाड़ने की हलकी आवाज आई और दरवाजा जो एक ही पल्ले का था, सरसर करता जमीन के अन्दर घुस गया। कमलिनी ने आनन्द सिंह से कहा, "अब सूंड़ को पीछे की तरफ हटाइये, मगर पहले सूंड़ के नीचे से या उसके ऊपर से लाँघकर दूसरी तरफ निकल चलिए।

हाथ में कंदील लिए हुए पहले तारासिंह टप गये और दरवाजे के उस पार जा खड़े हुए, तब इन्द्रजीतसिंह दरवाजे के उस पार पहुँचे, उसके बाद कुँअर आनन्दसिंह जाना ही चाहते थे कि एक नई घटना ने सब खेल ही बिगाड़ दिया।

दरवाजे के उस पार एक आदमी न मालूम कब से छिपा बैठा था। उसने फुर्ती से आगे बढ़कर एक लात उस कन्दील में मारी जो तारासिंह के हाथ में थी। कंदील हाथ से छटकर जमीन पर तो न गिरी मगर बुझ गई और एकदम अन्धकार हो गया। यद्यपि यह काम उसने बड़ी फुर्ती से किया, तथापि इन लोगों की निगाह उस पर पड़ ही गई, लेकिन उसकी असली सूरत नजर न पड़ी क्योंकि वह काला कपड़ा पहने और अपने चेहरे को नकाब से छिपाये हुए था।

अँधेरा होते ही उसने दूसरा काम किया। भुजाली उसके पास थी जिसका एक भरपूर हाथ उसने कुँअर इन्द्रजीतसिंह के सिर पर जमाया। अंधेरे के सबब से निशाने