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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२००

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से रवाना हुई। बाग में घूमती वह उस बुर्ज के पास गई जो बाग के पिछले कोने में था और जिसमें लाड़िली और कमलिनी की मुलाकात हुई थी। उस बुर्ज के बगल ही में एक और कोठरी स्याह पत्थर से बनी हुई थी मगर यह मालूम न होता था कि उसका दरवाजा किधर से है क्योंकि पिछली तरफ तो बाग की दीवार थी और बाकी तीनों तरफ वाली कोठरी की स्याह दीवारों में दरवाजे का कहीं कोई निशान न था। मायारानी ने बिहारी से कहा, 'कमन्द लगाओ क्योंकि हम लोगों को इस कोठरी की छत पर चलना होगा।' बिहारीसिंह ने वैसा ही किया। सबके पहले मायारानी कमन्द के सहारे उस कोठरी पर चढ़ गई और उसके बाद धनपत और दोनों ऐयार भी उसी छत पर जा पहुंचे।

ऊपर जाकर दोनों ऐयारों ने देखा कि छत के बीचोंबीच में एक दरवाजा ठीक वैसा ही है जैसा प्रायः तहखानों के मुँह पर रहता है। वह दरवाजा लकड़ी का था मगर उस पर लोहे की चादर मढ़ी हुई थी और उसमें एक साधारण ताला लगा हुआ था। मायारानी ने हरनामसिंह से कहा, "यह ताला मामूली है, इसे किसी तरह खोलना चाहिए।"

बिहारीसिंह ने ऐयारी के बटुए में से लोहे की एक टेढ़ी सलाई निकाली और उस ताले के मुँह में डालकर ताला खोल डाला, इसके बाद दरवाजे का पल्ला हटा कर किनारे किया। मायारानी ने दोनों ऐयारों को अन्दर जाने के लिए कहा, मगर बिहारीसिंह ने इनकार किया और कहा, "पहले आप इसके अन्दर उतरिये तब हम लोग इसके अन्दर जायेंगे क्योंकि यहाँ की अद्भुत बातों से हम लोग बहुत डर गये हैं।" लाचार होकर मायारानी कमन्द के सहारे उस कोठरी के अन्दर उतर गई जोर इसके बाद धनपत और दोनों ऐयार भी नीचे उतर गये।

ऊपर का दरवाजा खुला रहने से कोठरी के अन्दर चाँदना पहुँच रहा था। यह कोठरी लगभग बीस हाथ के चौडी और इससे कुछ ज्यादा लम्बी थी। यहाँ की जमीन लकड़ा की थी और उस पर किसी तरह का मसाला चढा हआ था। कोठरी के बीचोंबीच में एक छोटा-सा सन्दूक पड़ा हुआ था। धनपत का हाथ पकड़े मायारानी एक किनारे खड़ी हो गई और दोनों ऐयारों की तरफ देखकर बोली, "तुम दोनों मिलकर इस सन्दूक को मेरे पास लाओ।"

हुक्म के मुताबिक दोनों ऐयार उस सन्दूक के पास गए, मगर सन्दूक का कुण्डा पकड़ के उठाने का इरादा किया ही था कि उस जमीन का वह गोल हिस्सा जिस पर दोनों ऐयार खड़े थे किवाड़ के पल्ले की तरह एक तरफ से अन्दर की तरफ यकायक घुस गया और वे दोनों ऐयार जमीन के अन्दर जा रहे, साथ ही एक आवाज ऐसी आई जिसके सुनने से धनपत को मालूम हो गया कि दोनों ऐयार नीचे जल की तह तक पहुँच गये।

इसके बाद जमीन का वह हिस्सा जो लकड़ी का था फिर बराबर हो गया और सन्दूक भी उसी तरह दिखाई देने लगा।

यह हाल देख धनपत डर के मारे काँपने लगी और मायारानी की तरफ देख के