सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
203
 

नामसिंह के कान में क्या कहा था?

मायारानी––बहुत पूछने पर भी बिहारीसिंह और हरनामसिंह ने नहीं बताया कि चण्डूल ने उनके कान में क्या कहा था।

नागर––और आपके कान में उसने क्या कहा?

मायारानी––मेरे कान में तो उसने केवल इतना ही कहा था कि 'आठ दिन के अन्दर ही यह राज्य इन्द्रजीतसिंह का हो जायगा और तू मारी जायगी।' खैर, जो होगा देखा जायगा, अब भूतनाथ को यहाँ ले आ, उससे मिलने की बहुत जरूरत है।

नागर––बहुत अच्छा, तो क्या इसी जगह बुला लाऊँ?

मायारानी––हाँ-हाँ, इसी जगह बुला ला। वह तो ऐयार है, उससे पर्दा काहे का।

नागर कुछ सोचती-विचारती वहाँ से रवाना हई और भूतनाथ को जिसे बाग के फाटक पर छोड़ गई थी, साथ लेकर बाग के अन्दर घुसी। पहरे वालों ने किसी तरह का उज्र न किया और भूतनाथ इस बाग की हर एक चीज को अच्छी तरह देखता और ताज्जुब करता हुआ मायारानी के पास पहुँचा। नागर ने मायारानी की तरफ इशारा करके कहा, "यही हम लोगों की मायारानी हैं।" और भूतनाथ ने यह कह कर कि 'मैं बखूबी पहचानता हूँ" मायारानी को सलाम किया।

मायारानी ने भूतनाथ की उतनी ही खातिरदारी और चापलूसी की जितनी कोई खुदगर्ज आदमी उसकी खातिरदारी करता है जिससे कुछ मतलब निकालने की आवश्यकता होती है।

मायारानी––तुम्हारी स्त्री तुम्हें मिल गई?

भूतनाथ––जी हाँ, "मिल गई और यह उस इनाम का पहला नमूना है जो आपकी ताबेदारी करने पर मुझे मिलने की आशा है।

मायारानी––नागर ने जो कुछ प्रतिज्ञा तुमसे की है मैं अवश्य पूरी करूँगी बल्कि उससे बहुत ज्यादा इनाम हर एक काम के बदले में दिया करूँगी।

भूतनाथ––मैं दिलोजान से आपके काम में उद्योग करूँगा और कमलिनी को बुरा धोखा दूँगा। वह जितना मुझ पर विश्वास रखती है, उतना ही पछतायेगी। परन्तु आपको कई बातों का खयाल रखना चाहिए।

मायारानी––वह क्या?

भूतनाथ––एक तो जाहिर में मैं कमलिनी का दोस्त बना रहूँगा, जिसमें उसे मुझ पर किसी तरह का शक न हो, यदि आपका कोई जासूस मेरे विषय में आपको इस बात का सबूत दे कि मैं कमलिनी से मिला हुआ हूँ तो आप किसी तरह की चिन्ता न कीजियेगा।

मायारानी––नहीं, नहीं, ऐसी छोटी-छोटी बातें मुझे समझाने की जरूरत नहीं है, मैं खूब जानती हूँ कि बिना उससे मिले किसी तरह पर काम न चलेगा।

भूतनाथ––बेशक-बेशक, और इसी वजह से मैं बहुत छिप कर आपके पास आया करूँगा।