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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२१२

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चाप खड़ा रह गया।

कमलिनी––(भूतनाथ से) वाह-वाह-वाह! तुम्हारे भरोसे पर अगर कोई काम छोड़ दिया जाय तो वह बिल्कुल ही चौपट हो जाय!

भूतनाथ––(हाथ जोड़कर) माफ कीजिएगा, मुझसे एक भूल हो गई और इसी सबब से मैं आज्ञानुसार काशी में आपसे मिल न सका।

ममलिनी––भूल कैसी?

भूतनाथ––नागर को लिए हुए मैं आपके मकान की तरफ जा रहा था। एक दिन तो बखूबी चला गया, दूसरे दिन जब बहुत थक गया तो एक पहाड़ी के नीचे घने जंगल में उसकी गठरी रखकर सुस्ताने के लिए जमीन पर लेट गया, यकायक कम्बख्त नींद ने घर दबाया और मैं सो गया। जब आँख खुली तो नागर को अपने पास न देखकर घबरा गया और उसे चारों तरफ ढूँढ़ने लगा, मगर कहीं पता न लगा।

कमलिनी––अफसोस!

भूतनाथ––कई दिन तक मैं ढूँढ़ता रहा, आखिर भेष बदल जब काशी में आया तो खबर लगी कि नागर अपने मकान में मौजूद है। इसके बाद मैं गुप्त रीति से मायारानी के तिलिस्मी बाग के चारों तरफ घूमने लगा, वहाँ पता लगा कि दोनों कुमार और उनके ऐयारों को, जिन्हें मायारानी ने कैद कर रखा था, कोई छुड़ाकर ले गया, मैं उसी समय समझ गया कि यह काम आपका है। बस, तभी से आपको ढूँढ़ रहा हूँ। इस समय इत्तिफाक से इधर आ निकला।

कमलिनी––(कुछ सोचकर) तुम तो अपने को बड़ा होशियार लगाते हो, मगर वास्तव में कुछ भी नहीं हो! खैर, हम लोगों के साथ चले आओ।

भूतनाथ को भी साथ लिए हुए कमलिनी वहाँ से रवाना हुई और चश्मे के पास से होकर उस टीले के पास पहुँची जिसके ऊपर जाने का इरादा था। कमलिनी जब अपने साथियों को पीछे-पीछे आने के लिए कहकर टीले के ऊपर चढ़ने लगी, तब शेरसिंह ने टोक दिया और कहा, "यदि कोई हर्ज न हो तो आप मेरी एक बात पहले सुन लीजिये।"

कमलिनी––आप जो कुछ कहेंगे, मैं पहले ही समझ गई, आप चिन्ता न कीजिये और चले आइये।

शेरसिंह––ठीक है, मगर जब तक मैं कुछ कह न लूँगा, जी न मानेगा।

कमलिनी––(हँसकर) अच्छा कहिये।

शेरसिंह को अपने साथ आने का इशारा करके कमलिनी टीले के दूसरी तरफ चली और दोनों कुमार, तेजसिंह, तारासिंह, लाड़िली और भूतनाथ को टीले के ऊपर धीरे-धीरे चढ़ने के लिए कह गई। टीले के पीछे निराले में पहुँचने पर शेरसिंह ने अपने दिल का हाल कहना शुरू किया––

शेरसिंह––चाहे आप भूतनाथ को कैसा ही नेक और ईमानदार समझती हों, मगर मैं इतना कहे बिना नहीं रह सकता कि आप उस बेईमान शैतान पर भरोसा न कीजिये।

च॰ स॰-2-13