सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
222
 

और तीनों घोड़ों पर राजा गोपालसिंह, देवीसिंह और भूतनाथ ने सवार होकर रथ को तेजी के साथ हाँकने के लिए कहा। बात की बात में ये लोग शहर के बाहर हो गये बल्कि सुबह की सुफेदी निकलने के पहले ही लगभग पाँच कोस दूर निकल जाने के बाद एक चौमुहानी पर रुक कर विचार करने लगे कि अब रथ को किस तरफ ले चलना या रथ की हिफाजत किसके सुपुर्द करनी चाहिए!


11

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और वह भूतनाथ और इज्जत की निगाह से देखती है। इस समय मायारानी के सामने सिवाय भूतनाथ कोई दूसरा आदमी मौजूद नहीं है

मायारानी––इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुमने मेरी जान बचा ली।

भूतनाथ––गोपालसिंह को धोखा देकर गिरफ्तार करने में मुझे बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आज दो दिन से केवल पानी के सहारे मैं जान बचाये हूँ। अभी तक तो कोई ऐसी बात नहीं हुई जिसमें कमलिनी या राजा वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वाले किसी को मुझ पर शक हो। राजा गोपालसिंह के साथ केवल देवीसिंह था जिसको मैंने किसी जरूरी काम के लिए रोहतासगढ़ जाने की सलाह दे दी और उसके जाने के बाद गोपालसिंह को बातों में उलझा कर दरोगा वाले मकान में ले जाकर कैद कर दिया।

मायारानी––तो उसे तुमने खत्म ही क्यों न कर दिया?

भूतनाथ––केवल तुम्हारे विश्वास के लिए उसे जीता रख छोड़ा है।

मायारानी––(हँसकर) केवल उसका सिर ही काट लाने से मुझे पूरा विश्वास हो जाता! पर जो हुआ सो हुआ अब उसके मारने में विलम्ब न करना चाहिए!

भूतनाथ––ठीक है, जहाँ तक हो, अब इस काम में, जल्दी करना ही उचित है क्योंकि अबकी दफे यदि वह छूट जायगा तो मेरी बड़ी दुर्गति होगी।

मायारानी––नहीं-नहीं, अब वह किसी तरह नहीं बच सकता। मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ और अपने हाथ से उसका सिर काट कर सदैव के लिए टंटा मिटाती हूँ। घंटे भर और ठहर जाओ, अच्छी तरह अंधेरा हो जाने पर ही यहाँ से चलना उचित होगा, बल्कि तब तक तुम भोजन भी कर लो क्योंकि दो दिन के भूखे हो। यह तो कहो कि किशोरी और कामिनी को तुमने कहाँ छोड़ा?

भूतनाथ––किशोरी और कामिनी को मैं एक ऐसी खोह में रख आया हूँ जहाँ से