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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४९

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हूँ। राजा दिग्विजयसिंह उसकी मुहब्बत में चूर हो रहे थे, दीन-दुनिया की खबर भूले हुए थे, तहखाने के कायदे पर ध्यान न देकर गौहर को तहखाने में ले चले।

अभी पहला दरवाजा भी न खोला था कि यकायक एक भयानक आवाज आई। मालूम हुआ कि मानों हजारों तोपें एक साथ छूटी हैं। तमाम किला हिल उठा। गौहर बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ी, दिग्विजयसिंह भी खड़ा न रह सका।

जब दिग्विजयसिंह को होश आया, छत पर चढ़ गया और शहर की तरफ देखने लगा। शहर में बेहिसाब आग लगी हुई थी, सैकड़ों घर जल रहे थे, अग्निदेव ने अपना पूरा दखल जमा लिया था, आग के बड़े-बड़े शोले आसमान की तरफ उठ रहे थे। यह हाल देखते ही दिग्विजयसिंह ने सिर पीटा और कहा, "यह सब फसाद वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का है! बेशक उन लोगों ने मैगजीन में आग लगा दी और वह भयंकर आवाज मैगजीन के उड़ने की ही थी। हाय, आज सैकड़ों घर तबाह हो गये होंगे! इस समय वह कम्बख्त साधू अगर मेरे सामने होता तो मैं उसकी दाढ़ी नोंच लेता, जिसके बहकाने से वीरेन्द्रसिंह वगैरह को कैद किया!"

दिग्विजयसिंह घबरा कर राजमहल के बाहर निकला और तब उसे निश्चय हो गया कि जो कुछ उसने सोचा था, ठीक निकला। नौकरों ने खबर दी कि न मालूम किसने मैगजीन में आग लगा दी, जिसके सबब से सैकड़ों घर तबाह हो गए। उसी समय शहर में ऐसी आग लग गई जो अभी तक बुझाए नहीं बुझती। खबर के सुनते ही दिग्विजयसिंह अपने कमरे में लौट गया और बदहवास होकर गद्दी पर गिर पड़ा।

बेशक यह सब काम वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का ही था। इस आग-लगी में रामनारायण को भी तोपों में कीलें ठोंकने का खूब मौका हाथ लगा। रामानन्द दीवान घबरा कर घर से बाहर निकला और तहकीकात करने के लिए अकेला ही शहर की तरफ चला। रास्ते में चुन्नीलाल ने हाथ पकड़ लिया और कहा, "दीवानजी, बन्दगी!" बेमौके की बन्दगी से रामानन्द कुढ़ उठा और उसने चुन्नीलाल पर तलवार चलाई। चुन्नीलाल उछल कर दूर जा खड़ा हुआ और उस वार को बचा गया, मगर चुन्नीलाल के वार ने रामानन्द का काम तमाम कर दिया। उसकी भुजाली रामानन्द की गर्दन पर ऐसी बैठी कि सिर कट कर दूर जा गिरा।

अब हमको यह भी लिखना चाहिए कि भैरोंसिंह ने किस तरह मैगजीन में आग लगाई। भैरोंसिंह ने एक मोमबत्ती ऐसी तैयार की जो केवल दो घण्टे तक जल सकती थी अर्थात् उसमें दो घण्टे से ज्यादे देर तक जलने लायक मोम न था, और उस मोमबत्ती के बीचों-बीच में आतिशबाजी का एक अनार बनाया जिसमें आधी मोमबत्ती जब जल जाय तो आप से आप अनार में आग लगे। जब इस तरह की मोमबत्ती तैयार हो गई तो उसने अपने दोनों साथियों से कहा कि "मैं मैगजीन में आग लगाने जाता हूँ, अपनी फिक्र आप कर लूँगा। तुम लोग किसी ऐसी जगह जाकर छिपो जहाँ मैदान या किले की मजबूत दीवार हो, मगर इसके पहले शहर में आग लगा दो।" इसके बाद भैरोंसिंह मैगजीन के पास पहुँचे और इस फिक्र में लगे कि मौका मिले तो कमन्द लगा कर उसके अन्दर जायँ।