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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/६३

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फिर तन-बदन की सुध न रही। वह ऐसी जगह न थी कि कोई उसके पास जाए या सम्हाले और देखें कि उसकी क्या हालत है।

भैरोसिंह और तारासिंह ने जो कामिनी को देखा, तो वह लोग फूट-फूट कर रोने लगे। तहखाने में हाहाकार मच गया। घंटे भर यही हालत रही। जब कामिनी ने रो क्या कहा कि 'इसी बगल वाली कोठरी में बेचारी किशोरी भी है,हाय,हम लोगों का रोना सुनकर उस बेचारी की क्या अवस्था हुई होगी।'तब भैरोसिंह और तारासिंह चुप हुए और कामिनी का मुंह देखने लगे।

भैरोसिंह——तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि यहां किशोरी भी है?

कामिनी——मैं उससे बातें कर चुकी हूं।

तारासिंह-क्या तुम बड़ी देर से इस तहखाने में हो?

कामिनी-देर क्या, मैं तो कई दिनों से भूखी प्यासी इस तहखाने में कैद हूं। (उस आदमी की तरफ इशारा करके) या मेरा पहरा देता था।

भैरोसिंह-खैर, जो होना था सो हो गया। अब हम लोग अगर रोने-धोने में लगे रहेंगे, तो इसके दुश्मन का पता ना लगा सकेंगे और न उससे बदला ही ले सकेंगे। यों तो जन्म भर रोना ही है परंतु उसके दुश्मन से बदला ले लेंगे तो कलेजे में कुछ ठंडक पड़ेगी। हाय, जब महाराज यहां आएंगे तो हम किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे लड़के की लाश इस तहखाने में पाई गई।

इसके बाद भैरोसिंह ने इस तहखाने में आने का बाकी हाल कहा तथा यह भी बताया कि"जब खंडार के बाहर कुए पर हम दोनों आदमी बैठे थे, तभी तीन आदमियों की बातचीत से मालूम हो गया कि तुमको उन लोगों ने कैद कर लिया है। परंतु यह आशा न ठीक है हम तुम्हें इस अवस्था मैं देखेंगे। उन लोगों ने मुझे देखा तो पहचान कर डरे और भाग गये, मगर मुझे यह मालूम हुआ कि वह लोग कौन है और उन्होंने मुझे कैसे पहचाना?"

कामिनी-(हाथ का इशारा करके) उन्हीं लोगों में से एक ही अभी है जिसे तुमने बांध रखा है।

भैरोसिंह-(उस आदमी से) बता, तू कौन है?

आदमी-बताने को तो मैं सब-कुछ बता सकता हूं, परंतु मेरी जान किसी तरह न बचेगी।