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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/७८

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हम ऊपर लिख आये हैं कि इस बावली में से कुछ मिट्टी निकल जाने पर बावली के बीचोबीच में पीतल की मूरत दिखाई पड़ी। उस मूरत का भाव यह था कि एक हिरन का शेर ने शिकार किया है और हिरन की गर्दन का आधा भाग शेर के मुँह में है। मूरत बहुत ही खूबसूरत बनी हुई थी।

जिस समय का हाल हम लिख रहे हैं अर्थात् आधी रात गुजर जाने के बाद यकायक उस मूरत में एक प्रकार की चमक पैदा हुई और धीरे-धीरे वह चमक यहाँ तक बढ़ी कि तमाम बावली बल्कि तमाम खँडहर में उजियाला हो गया, जिसे देख सब-के- सब घबरा गए। वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और कमला ये तीनों आदमी फुर्ती के साथ उस जगह पहुँचे जहाँ तारासिंह बैठा हुआ ताज्जुब में आकर उस मूरत को देख रहा था। घण्टा भर बीतते-बीतते मालूम हुआ कि वह मूरत हिल रही है। उस समय शेर की दोनों आँखें ऐसी चमक रही थीं कि निगाह नहीं ठहरती। मूरत को हिलते देख सभी को बड़ा ताज्जुब हुआ और निश्चय हो गया कि अब तिलिस्म की कोई-न-कोई कार्रवाई हम लोग जरूर देखेंगे।

यकायक मूरत बड़े जोर से हिली और तब एक भारी आवाज के साथ जमीन के अन्दर धँस गई। खँडहर में चारों तरफ अँधेरा हो गया। कायदे की बात है कि आँखों के सामने जब थोड़ी देर तक कोई तेज रोशनी रहे और वह यकायक गायब हो जाय या बुझा दी जाय तो आँखों में मामूली से ज्यादा अँधेरा छा जाता है, वही हालत इस समय खँडहर वालों की हुई। थोड़ी देर तक उन लोगों को कुछ भी नहीं सूझता था। आधी घड़ी गुजर जाने के बाद वह गड़हा दिखाई देने लगा जिसके अन्दर मूरत धँस गई थी। अब उस गड़हे के अन्दर भी एक प्रकार की चमक मालूम होने लगी और देखते-देखते हाथ में चमकता हुआ नेजा लिए वही राक्षसी उस गड़हे में से बाहर निकली जिसका जिक्र ऊपर कई दफे किया जा चुका है।

हमारे वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयार लोग उस औरत को कई दफे देख चुके थे और वह औरत इनके साथ अहसान भी कर चुकी थी, इनलिए उसे यकायक देख कर वे लोग कुछ प्रसन्न हुए और उन्हें विश्वास हो गया कि इस समय यह औरत जरूर हमारी कुछ-न-कुछ मदद करेगी और थोड़ा-बहुत यहाँ का हाल भी हम लोगों को जरूर मालूम होगा।

उस औरत ने नेजे को हिलाया। हिलने के साथ ही बिजली-सी चमक उसमें पैदा हुई और तमाम खंडहर में उजाला हो गया। वह वीरेन्द्र सिंह के पास आई और बोली, आपको पहर भर की मोहलत दी जाती है। इसके अन्दर इस खँडहर के हर एक तहखाने में यदि रास्ता मालूम है तो आप घूम सकते हैं। शाहदरवाजा जो बन्द हो गया था, उसे आपके खातिर से पहर भर के लिए मैंने खोल दिया है। इससे विशेष समय लगाना अनर्थ करना है।"

इतना कह वह राक्षसी उसी गड़हे में घुस गई और वह पीतल वाली मूरत जमीन के अन्दर धँस गई थी फिर अपने स्थान पर आकर बैठ गई। इस समय उसमें किसी तरह की चमक न थी।