सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
127
 

तारा-ओह, गल्ले की क्या कमी है, साल-भर से ज्यादा दिन तक काम चलाने के लिए गल्ला मौजूद है!

कामिनी-और जल के लिए क्या बन्दोबस्त होगा! क्योंकि जितनी तेजी के साथ इस तालाब का जल निकल रहा है उससे तो मालूम होता है कि पहर भर के अन्दर तालाब सूख जायगा।

कामिनी की इस बात ने तारा को चौंका दिया। उसके चेहरे से बेफिक्री की निशानियाँ जो चारों पुतलियों की करामात से पैदा हो गई थीं, जाती रहीं और उसके बदले में घबराहट और परेशानी ने अपना दखल जमा लिया। तारा की यह अवस्था देखकर किशोरी और कामिनी को विश्वास हो गया कि इस तालाब का जल सूख जाने पर बेशक हम लोगों को प्यासे रहकर जान देनी पड़ेगी, क्योंकि अगर ऐसा न होता तो तारा घबराकर चुप न हो जाती, जरूर कुछ जवाब देती। आखिर तारा को चिन्ता में डूबे हुए देखकर कामिनी ने पुनः कुछ कहना चाहा मगर मौका न मिला, क्योंकि तारा यकायक कुछ सोचकर उठ खड़ी हुई, और कामिनी तथा किशोरी को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा करके छत के नीचे उतर कमरों में घूमती-फिरती उस कोठरी में पहुंची जिसमें नहाने के लिए छोटा-सा हौज बना हुआ था, जिसमें एक तरफ से तालाब का जल आता और दूसरी तरफ से निकल जाता था। इस समय तालाब में पानी कम हो जाने के कारण हौज का जल भी कुछ कम हो गया था। तारा ने वहाँ पहुँचने के साथ ही फुर्ती से उन दोनों रास्तों को बन्द कर दिया जिनसे हौज में जल आता और निकल जाता था। इसके बाद एक ऊँची सांस लेकर उसने कामिनी की तरफ देखा, और कहा

तारा-ओफ, इस समय बड़ा ही गजब हो चला था! अगर तुम पानी के विषय में याद न दिलातीं तो इस हौज की तरफ से मैं बिल्कुल बेफिक्र थी। इसका ध्यान भी न था कि तालाब का जल कम हो जाने पर यह हौज भी सूख जायगा और तब हम लोगों को प्यासे रह कर जान देनी पड़ेगी।

किशोरी-तो इससे जाना जाता है कि तालाब सूख जाने पर, सिवाय इस छोटे से हौज के और कोई चीज ऐसी नहीं है जो हम लोगों की प्यास बुझा सके?

कामिनी-और यह हौज तीन-चार दिन से ज्यादा काम नहीं चला सकता, ऐसी अवस्था में उन चक्रों का महीने-भर तक घूमना ही वृथा है, क्योंकि हम लोग प्यास के मारे मौत के मेहमान हो जायंगे। अफसोस, जिस कारीगर ने इस मकान की हिफाजत के लिए ऐसी चीजें बनाईं, और जिसने यह सोचकर कि तालाब का जल सूख जाने पर भी इस मकान में रहने वालों पर मुसीबत न आवे, ये घूमने वाले चक्र बनाये उसने इतना न सोचा कि तालाब सूखने पर यहाँ के रहने वाले जल कहाँ से पीयेंगे। उसे इस मकान में एक कुआँ भी बना देना था।

तारा–ठीक है, मगर जहाँ तक मैं खयाल करती हूँ कि इस मकान के बनाने वाले कारीगर ने इतनी बड़ी भूल न की होगी। उसने कोई कुआँ अवश्य बनाया होगा,