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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५२

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भगवानी ने सब हाल अर्थात् जो कुछ उसने कसुर किया था, सच-सच कह दिया और अन्त में फिर कमलिनी के पैरों पर गिर कर बोली, "मैंने कोई बात नहीं छिपाई, अब अपनी प्रतिज्ञानुसार मुझे छोड़ दीजिए।"

"हाँ, छोड़ दूँगी।" कहकर कमलिनी ने भूतनाथ और श्यामसुन्दरसिंह की तरफ देखा और कहा, "इसकी मुश्कें बाँध लो और जहाँ उचित समझो ले जाकर अपनी हिफाजत में रक्खो। हम लोग मकान की तरफ न जाकर पहले किशोरी, कामिनी और तारा को छुड़ाने का उद्योग करते हैं और इसके बाद जैसा मौका होगा किया जायगा। कल इसी समय इसी जगह हम लोग या हम लोगों में से कोई आवेगा, तुम मौजद रहना, अगर भगवानी की बात सच निकली तो ठीक है, नहीं तो एक बात भी झूठी निकलने पर कल इसी जगह इसका सिर उतार लिया जायगा। बस अब मैं एक पल भी नहीं रुक सकती।"

भूतनाथ और भगवानी को इसी जगह छोड़ भैरोंसिंह देवीसिंह और लाडिली को साथ लिए हए कमलिनी वहाँ से रवाना हुई। इस समय उसके पास तिलिस्मी खंजर मौजद था, वही तिलिस्मी खंजर जो भैरोंसिंह का पत्र पाकर इन्द्रदेव ने उसे दे दिया था।

वहाँ से थोड़ी दूर पर एक पहाड़ी थी जिससे मिली-जुली छोटी-बड़ी पहाड़ियों का सिलसिला पीछे की तरफ दूर तक चला गया था। कमलिनी अपने साथियों को लिए हए उसी तरफ रवाना हुई। कमलिनी को अपने मकान के बर्बाद होने और लूटे जाने का इतना रंज न था जितना किशोरी, कामिनी और तारा की अवस्था पर रंज था। वह साथियों से में निम्नलिखित बातें करती हुई तेजी से उस पहाड़ी की तरफ जा रही थी।

कमलिनी-अफसोस, तारा ने बड़ा धोखा खाया! अब देखना चाहिए उन तीनों को मैं जीता पाती हैं या नहीं!

लाडिली-किशोरी और कामिनी बेचारी ने न मालम विधाता का क्या बिगाड़ा है कि सिवा दुःख के सुख तो उन्हें...

कमलिनी-दु:खों ने तो तो पहले ही उन्हें अधमरा कर दिया था, अब देखना चाहिए कि कई दिन की भूख-प्यास ने उन्हें जीता भी छोड़ा है या नहीं? (रोकर) सच तो यह है कि यदि वे जीती-जागती आज मुझे न मिलीं तो मैं दोनों कुमारों को मुँह दिखाने लायक न रहूँगी और जब इस योग्य हो जाऊँगी तो फिर जी कर ही क्या करूँगी! (कुछ सोचकर) निसन्देह अगर ऐसा हुआ तो आज मुझे भी उसी जगह मरकर रह जाना होगा। हे ईश्वर, तेरी सृष्टि में एक-से-एक बढ़कर खूबसुरत गुलबूटे मौजूद है, इन दोनों के लिए कमी नहीं है, क्या तू नहीं जानता कि उन कुमारों की जिन्दगी के लिए जिनकी प्रसन्नता पर हमारी प्रसन्नता निर्भर है केवल ये ही दोनों हैं? अफसोस, यद्यपि कम्बख्त भगवानी से मैं खटकी रहती थी मगर यह आशा न थी, कि वह यहाँ तक कर गुजरेगी।

भैरोंसिंह-क्या आप जानती थीं कि भगवानी दिल की खौटी है?

कमलिनी-मुझे इस बात का निश्चय तो न था कि वह खोटी है मगर उसके बात-बात पर कसम खाने से मैं खटकी रहती थी, क्योंकि मैं खूब जानती हूँ कि जो आदमी