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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९२

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समय यकायक जो बातें मालूम हुई उन्होंने उसे अपने आपे से बाहर कर दिया था।

तेजसिंह ने चौथी चिट्ठी पढ़ी। उसमें यह लिखा हुआ था

"प्रिय बन्धु हेला सिंह,

"बहुत दिनों से पत्र न भेजने के कारण आपको उदास न होना चाहिए। मैं इस फिक्र में लगा हुआ हूँ कि किसी तरह बलभद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी को खपा डालूं मगर अभी तक मैं कुछ न कर सका क्योंकि एक तो बलभद्रसिंह स्वयं ऐयार है दूसरे आजकल राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार बिहारीसिंह और हरनामसिंह भी उसके घर की हिफाजत कर रहे हैं। खैर कोई चिन्ता नहीं, देखिए तो सही क्या होता है! मैंने बलभद्रसिंह के पड़ोस में हलवाई की एक दूकान खोली है और अच्छे-अच्छे कारीगर हलवाई नौकर रक्खे हैं। बहुत-सी मिठाइयाँ मैंने ऐसी तैयार की हैं जिनमें दारोगा साहब का दिया हुआ अनूठा जहर बड़ी खूबी के साथ मिलाया गया है। यह जहर ऐसा है कि जिसे खाने के साथ ही आदमी नहीं मर जाता बल्कि महीनों तक बीमार रह के जान देता है। जहर खाने वाले का बदन बिल्कुल फूट जायगा और वैद्य लोग उसे देख के सिवाय इसके और कुछ भी नहीं कह सकेंगे कि यह गर्मी की बीमारी से मरा है, जहर का तो किसी को गुमान भी होगा। मैंने उस घर की लौंडियों और नौकरों से भी मेल-जोल पैदा कर लिया है, अस्तु चाहे वे लोग कैसे भी होशियार और धूर्त क्यों न हों, मगर एक-न-एक दिन हमारी जहरीली मिठाई बलभद्रसिंह के पेट में उतर ही जायगी। आपकी लड़की बड़ी ही होशियार और चांगली है। वह सुजान के घर में बहुत अच्छे ढंग से रहती है। सुजान ने उसे अपनी भतीजी कहके मशहूर किया है और उसकी भी बातचीत चल रही है, मगर गोपालसिंह का बूढ़ा बाप बड़ा ही शैतान है। दारोगा साहब उसका नाम-निशान भी मिटाने के उद्योग में लगे हुए है। सब्र करो, घबराओ मत, काम अवश्य बन जायगा। आज से मैं अपना नाम बदल देता हूँ, मुझे अब भूतनाथ कह के पुकारा करना।

वही-भूत०।"

इस चिठ्ठी ने सभी के दिल पर बड़ा ही भयानक असर किया, यहां तक कि देवीसिंह की आँखें भी मारे क्रोध के लाल हो गई और तमाम बदन काँपने लगा।

तेजसिंह-बेईमान! दुष्ट! इतनी बड़ी-चढ़ी बदमाशी!

भैरोंसिंह-इस हरामजदगी का कुछ ठिकाना है!

लाड़िली-इस समय मेरा कलेजा फुंका जाता है। यदि भूतनाथ यहाँ मौजूद होता तो इसी समय अपने हृदय की आंच में उसे आहुति दे देती। परमेश्वर, ऐसे-ऐसे पापियों के साथ तू...

कमलिनी-हाय! कम्बख्त भूतनाथ ने तो ऐसा काम किया है कि यदि वह कुत्ते से भी नुचवाया जाय तो उसका बदला नहीं हो सकता।

बलभद्रसिंह-ठीक है, मगर मैं उसकी जान कदापि न मारूंगा। मैं वही काम करूँगा जिससे मेरे कलेजे की आग ठंडी हो। ओफ'..