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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/३०

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राजा वीरेन्द्रसिंह की बेशुमार फौज जमानिया की तरफ आ रही है, बल्कि यों कहना चाहिए कि आज-कल में पहुँचना ही चाहती है।

मायारानी---हाँ, यह खबर मैंने भी सुनी है। यदि गोपालसिंह का और धनपत का मामला न बिगड़ा होता तो मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाती, परन्तु इस समय तो मुझे अपनी रिआया में से किसी का भी भरोसा नहीं।

लीला-भरोसे के साथ-ही-साथ आप समझ रखिए कि आप अपने किसी नौकर पर हकूमत की लाल आँख भी अब नहीं दिखा सकतीं। मगर इन बातों में वृथा देर हो रही है। इस विषय को बहुत जल्द तय कर लेना चाहिए कि अब क्या करना और कहाँ जाना मुनासिब होगा।

मायारानी–हाँ, ठीक है मगर इसके भी पहले मैं तुमसे यह पूछती हूँ कि तुम इस मुसीबत में मेरा साथ देने के लिए कब तक तैयार रहोगी?

लीला-जब तक मेरी जिन्दगी है या जब तक आप मुझ पर भरोसा करेंगी।

मायारानी—यह जवाब तो साफ नहीं है, बल्कि टेढ़ा है।

लीला-इस पर आप अच्छी तरह गौर कीजिएगा मगर यहाँ से निकल चलने के बाद।

मायारानी-अच्छा, यह तो बताओ कि मेरी और लौंडियों का क्या हाल है?

लीला-आपकी लौंडियाँ केवल चार-पाँच ऐसी हैं जिन पर मैं भरोसा कर सकती हैं, बाकी लौंडियों के विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकती और न उनके दिल का हाल ही जाना जा सकता है।

मायारानी-(ऊँची साँस लेकर) हाय, यहाँ तक नौबत पहुँच गई! यह सब मेरे पापों का फल है। अच्छा जो होगा देखा जायगा। इस अनूठे तमंचे और गोलियों को मैं सम्हालती हूँ और थोड़ी देर के लिए पुनः तिलिस्मी तहखाने में जाकर देखती हूँ कि मेरे काम की ऐसी कौन-सी चीज है जिसे सफर में अपने साथ ले जा सकूँ। जो कुछ हाथ लगे सो ले आती हूँ और बहुत जल्द तुमको और उन लौंडियों को साथ लेकर निकल भागती हैं जिन पर तुम भरोसा रखती हो। कोई हर्ज नहीं, इस गई-गुजरी हालत में भी मैं एक दफा लाखों दुश्मनों को जहन्नुम पहुंचाने की हिम्मत रखती हैं!

इसके जवाब में पीछे की तरफ से किसी गुप्त मनुष्य ने कहा-"बेशक-बेशक, तुम मरते-मरते भी हजारों घर चौपट करोगी!"


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ऐयारी भाषा की चिट्ठी को पढ़ने और कमलिनी के ढाढ़स दिलाने पर कुँवर इन्द्रजीतसिंह की दिलजमई तो हो गई परन्तु 'टेप' का परिचय पाने के लिए वे बेचैन हो हो रहे थे अस्तु उससे मिलने की आशा में दरवाजे की तरफ ध्यान लगाकर थोड़ी देर तक खड़े हो गए। यकायक उस मकान का दरवाजा खुला और धनपत की कलाई पकड़े