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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४४

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एक मोमबत्ती और जलाई और तब बड़ी होशियारी से सफेद पत्थरों पर पैर रखते हुए आगे बढ़े। यह सुरंग एकदम सीधी बनी हुई थी और इसकी जमीन हर तरह से साफ थी, जिसका सबब शायद यह हो कि यहाँ कहीं से गर्द-गबार के आने की जगह नहीं थी। फिर इस सुरंग में ऐसी कारीगरी भी की गई थी कि किसी-किसी जगह दीवार में में से साफ छनी हुई हवा आती और दूसरी राह से निकल जाती थी जिससे सुरंग की हवा हरदम साफ बनी रहती थी और उसमें जहर का असर पैदा नहीं होने पाता था।

लगभग दो सौ कदम जाने के बाद देखा कि दाहिनी तरफ दीवार के साथ वाले लोहे के एक आदमी के दोनों हाथ सिमटे हए हैं और उनके बीच में हडडी का एक ढाँचा फंसा हआ है। वह ढाँचा मनुष्य के शरीर का था जिसे देखते ही भूतनाथ ने देवीसिंह से कहा, "देखिये यह धोखा खाने का नमूना है। कोई अनजान आदमी सुरंग में आकर जान दे बैठा है, अनजान कसे कहें क्योकि यहां तक तो आ हो चुका था शाय धोखा खा गया हो।" दोनों ऐयार ताज्जुब से उस पंजर को देखने लगे, पर इसी समय यकायक देवीसिंह की निगाह पीछे की तरफ (जिधर से ये दोनों आये थे) जा पड़ी और एक रोशनी देख देवीसिंह ने ताज्जब के साथ भतनाथ से कहा, "देखिये तो वह रोशनी कैसी है?"

भूतनाथ-(बत्ती के आगे हाथ रखकर और गौर से रोशनी की तरफ देखकर) कोई आ रहा है!

देवीसिंह-दो औरतें मालूम पड़ती हैं।

भूतनाथ--ठीक है, शायद लाड़िली और कमलिनीजी हों, क्योंकि सिवाय जानकार के और कोई तो इस सुरंग में आ नहीं सकता।

देवीसिंह-मुझे तो विश्वास नहीं होता कि वे कमलिनी और लाड़िली होंगी। भूतनाथ-शक तो मुझे भी होता है, खैर, चलकर देख ही क्यों न लें।

भतनाथ और देवीसिंह दोनों फिर पीछे की तरफ लौटे अर्थात उस रोशनी की तरफ बढ़े जो यकायक दिखाई दी थी। दो ही कदम बढ़े होंगे कि कोई चीज उनके सामने जमीन पर आकर गिरी और पटाके की सी आवाज हुई, इसके साथ ही उसमें से बेहोशी पैदा करने वाला जहरीला धुआँ निकला। वह तिलिस्मी गोली थी जो मायारानी ने तिलिस्मी तमंचे में भर कर भूतनाथ और देवीसिंह की तरफ चलाई थी। भूतनाथ और देवीसिंह इस गुमान में पीछे की तरफ हटे थे कि शायद वह रोशनी कमलिनी और लाडिली के साथ हो, मगर वास्तव में ये दोनों मायारानी और नागर थीं जिन्होंने छिप कर भूतनाथ और देवीसिंह की बातें सुनी थीं। जब दोनों ऐयार शेर वाला दरवाजा खोलकर तहखाने में उतर गए थे तो चर्खा चलाकर दरवाजा बन्द करने के पहले ही ये दोनों भी दरवाजे के अन्दर घुस कर दो-चार सीढ़ी नीचे उतर आई थीं और इन्होंने वे बातें भी सुन ली थीं जो नीचे उतर जाने के बाद देवीसिंह और भूतनाथ में हुई।