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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/६१

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गद्दी पर बैठाना चाहता है, या वह स्वयं राजा साहब के बारे में धोखा खा रहा है और चाहता है कि तुम्हें गिरफ्तार कर राजा वीरेन्द्रसिंह के हवाले करे और उनकी मेहरबानी के भरोसे पर स्वयं जमानिया का राजा बन बैठे। तुम कह चुकी हो कि राजा वीरेन्द्रसिंह की बीस हजार फौज मुकाबले में आ चुकी है जिसका अफसर नाहरसिंह है। अब सोचना चाहिए कि नाहरसिंह के मुकाबले में आ जाने पर भी चुपचाप बैठे रहना बेसबब नहीं है और..

मायारानी-शायद इसका सबब यह हो कि दीवान ने मुझको गिरफ्तार करके वीरेन्द्रसिंह के हवाले कर देने की शर्त पर उनसे सुलह कर ली हो?

बाबा-ताज्जुब नहीं, ऐसा ही हो, मगर घबराओ नहीं मैं दीवान के पास जाऊँगा और देखूँगा कि वह किस ढंग पर चलने का इरादा करता है। अगर बदमाशी करने पर उतारू है तो मैं उसे ठीक करूँगा। हाँ यह तो बताओ कि दीवान को तुम्हारी तिलिस्मी बातों या तिलिस्मी कारखाने का भेद तो किसी ने नहीं दिया?

मायारानी-जहाँ तक मैं समझती हूँ उसे तिलिस्मी कारखाने में कुछ दखल नहीं है, मगर इस बात को मैं जोर देकर नहीं कह सकती क्योंकि वे दोनों नकाबपोश हमारे तिलिस्मी बाग के भेदों से बखूबी वाफिक हैं जिनका हाल मैं आपसे कह चुकी हूँ, बल्कि ऐसा कहना चाहिए कि बनिस्बत मेरे वे ज्यादा जानकार हैं क्योंकि अगर ऐसा न होता तो वे मेरी उन तरकीबों को रद्द न कर सकते, जो उनके फंसाने के लिए की गई थीं। ताज्जुब नहीं कि उन दोनों ने दीवान से मिलकर तिलिस्म का कुछ हाल भी उससे कहा हो।

बाबा-खैर कोई हर्ज नहीं, देखा जायेगा। मैं कल जरूर वहाँ जाऊँगा और दीवान से मिलूँगा।

मायारानी-नहीं, बल्कि आप आज ही जाइये और जहाँ तक जल्दी हो सके, कुछ बन्दोबस्त कीजिये, क्योंकि अगर दीवान के भेजे हुए सौ-पचास आदमी मुझे ढूंढते हुए यहाँ आ जायेंगे, तो सख्त मुश्किल होगी। यद्यपि यह तिलिस्मी खंजर मुझे मिल गया है और तिलिस्मी गोली से भी मैं सैकड़ों की जान ले सकती हूँ मगर उस समय मेरे किए कुछ भी न होगा जब किसी ऐसे से मुकाबला हो जाये जिसके पास कमलिनी का दिया हुआ इसी प्रकार का खंजर मौजूद होगा।

बाबा-तथापि इस बँगले में आकर तुम्हें कोई सता नहीं सकता।

मायारानी--ठीक है मगर मैं कब तक इसके अन्दर छिप कर बैठी रहूँगी? आखिर भूख-प्यास भी तो कोई चीज है!

बाबा-मगर ऐसा होना बहुत मुश्किल है!

मायारानी-तो हर्ज ही क्या है अगर आप इसी समय दीवान के पास जायें? मैं खूब जानती हूँ कि वह आपकी सूरत देखते ही डर जायेगा।

बाबा-क्या तुम्हारी यही मर्जी है कि मैं इसी समय जाऊँ?

मायारानी- हाँ, जाइए और अवश्य जाइए।

बाबा-अच्छा यही सही, मैं जाता हूँ।