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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१५०

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जुबानी मालूम हुआ था और मनोरमा ने इन्दिरा से उस समय सुना था जब मनोरमा को माँ समझ के वह उसके फेर में पेड़ गई थी।

किशोरी–-ठीक है मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि इन सब बखेड़ों की जड़ वही कम्बख्त दारोगा है। यदि जमानिया के राज्य में दारोगा न होता तो इन सब बाटों में से एक भी न सुनाई देती और न हम लोगों की दुःखमय कहानी का कोई अंश लोगों के कहने सुनने के लिए पैदा होता । (कमलिनी से) मगर बहिन, यह तो बताओ कि इस हरामी के पिल्ले (दारोगा) का कोई वारिस या रिश्तेदार भी दुनिया में है या नहीं?

कमलिनी--सिवाय एक के और कोई नहीं ! दुनिया का कायदा है कि जब आदमी भलाई या बुराई कुछ सीखता है तो पहले अपने घर ही से उसे आरम्भ करता है । मां-बाप के अनुचित लाड़-प्यार और उनकी असावधानी से बुरी राह पर चलने वाले लड़के घर ही में श्रीगणेश करते हैं और तब कुछ दिन के बाद वे दुनिया में मशहूर होने योग्य होते हैं । यही बात इस हरामखोर की भी थी, इसने पहले अपने नाते-रिश्तेदार ही पर सफाई का हाथ फेरा और उन्हें जहन्नुम पहुँचाकर समय के पहले घर का मालिक बन बैठा । साधु का भेष धरना इसने लड़कपन ही से सीखा है और विशेष करके इसके इसी भेष की बदौलत लोग धोखे में भी पड़े । हमारे राजा गोपालसिंह ने भी (मुस्कुराती हुई) इसे वशिष्ठ मुनि ही समझकर अपने यहाँ रक्खा था। हाँ, इसका एक चचेरा भाई जरूर बच गया था जो इसके हत्थे नहीं चढ़ा था, क्योंकि वह खुद भी परले सिरे का बदमाश था और इसकी करतूतों को खूब समझता था जिससे लाचार होकर इसे उसकी खुशामद करनी ही पड़ी और उसे अपना साथी बनाना ही पड़ा।

किशोरी--क्या वह मर गया? उसका क्या नाम था?

कमलिनी--नहीं वह मरा नहीं, मगर मरने के ही बराबर है, क्योंकि वह हमारे यहां कैद है । उसने अपना नाम शिखण्डी रख लिया था। तुम जानती ही हो कि जब मैं जमानिया के खास बाग के तहखाने और सुरंग की राह से दोनों कुमारों तथा बाकी कैदियों को लेकर बाहर निकल रही थी तो हाथी वाले दरवाजे पर उसने इनके (इन्द्र- जीतसिंह) के ऊपर वार किया था।

किशोरी-–हाँ-हाँ, तो क्या वह वही कम्बख्त था?

कमलिनी–-हाँ वही था। उसे मैं अपना पक्षपाती समझती थी मगर बेईमान ने मुझे धोखा दिया । ईश्वर की कृपा थी कि पहले ही वार में वह उसी जगह गिरफ्तार हो गया, नहीं तो शायद मुझे धोखे में पड़कर बहुत तकलीफें उठानी पड़ती और

कमलिनी ने इतना कहा ही था कि उसका ध्यान सामने के जंगल की तरफ जा पड़ा। उसने देखा कि कुंअर आनन्दसिंह एक सब्ज घोड़े पर सवार सामने की तरफ से आ रहे हैं, साथ में केवल तारासिंह एक छोटे टटू पर सवार बातें करते आ रहे हैं, और दूसरा कोई आदमी नहीं है । साथ ही इसके कमलिनी को एक और अद्भुत दृश्य दिखाई दिया जिससे वह यकायक चौंक पड़ी और इसलिए उसका तथा और सभी का


1. देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति, तीसरा भाग, दसवाँ बयान, और उन्नीसवाँ भाग, छठवां बयान। 2. देखिए। " " आठवाँ भाग, दूसरा बयान।