सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
16
 


पीता होगा' और मेरे लिए अपने घर में कुछ-न-कुछ बन्दोबस्त जरूर कर रक्खा होगा ! अगर अबकी दिलेरी के साथ उसके घर में जाऊँगा तो बेशक फंस जाऊँगा, इसलिए बाहर ही उससे मुलाकात करने का बन्दोबस्त करने लगा। खैर, इसी फेर में दस-बारह दिन बीत गए और इस बीच में मुलाकात करने का कोई अच्छा मौका न मिला। पता लगाने से मालूम हुआ कि वह बीमार है और घर से बाहर नहीं निकलता । यह बात मुझे मायाप्रसाद ने कही थी मगर मैंने मायाप्रसाद से इन्दिरा के बारे में कुछ भी नहीं कहा और न राजा साहब (गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) ही से कुछ कहा, क्योंकि दारोगा को बेदाग छोड़ देने के लिए मेरे दोस्त इन्द्रदेव ने पहले ही से तय कर लिया था, अब अगर राजा साहब से मैं कुछ कहता तो दारोगा जरूर सजा पा जाता। लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि मायाप्रसाद और दारोगा को इस बात का पता क्योंकर लग गया कि इन्दिरा फलां जगह है । खैर, मुख्जसिर यह है कि एक दिन स्वयं मायाप्रसाद ने मुझसे कहा-“गदाधरसिंह, मैं तुम्हें इसकी इत्तिला देता हूँ कि सरयू निःसन्देह दारोगा की कैद में है मगर बीमार है, अगर तुम किसी तरह दारोगा के मकान में चले जाओ तो उसे जरूर अपनी आँखों से देख सकोगे। मेरी इस बात में तुम किसी तरह का शक न करो, मैं बहुत पक्की बात तुमसे कह रहा हूँ ।” मायाप्रसाद की बात सुनकर मुझे एक दफे जोश चढ़ आया और मैं दारोगा के मकान में जाने के लिए तैयार भी हो गया। मैं क्या जानता था कि मायाप्रसाद दारोगा से मिला हुआ है । खैर, मैं अपनी हिफाजत के लिए कई तरह का बन्दोबस्त करके आधी रात के समय कमन्द के जरिये दारोगा के लम्बे- चौड़े और शैतान की आंत की सूरत वाले मकान में घुस गया और चोरों की तरह टोह लेता हुआ उस कमरे में जा पहुंचा जिसमें दारोगा एक गद्दी के ऊपर उदास बैठा हुआ कुछ सोच रहा था। उस समय उसके बदन पर कई जगह पट्टी बंधी हुई थी जिससे वह चुटीला मालूम पड़ता था और उसके सिर का भी यही हाल था। दारोगा मुझे देखते ही चौंक उठा और आँखें चार होने के साथ ही मैंने उससे कहा, "दारोगा साहब, मैं आपके मकान में कैद होने के लिए नहीं आया हूँ बल्कि सरयू को देखने के लिए आया हूँ जिसके इस मकान में होने का पता मुझे लग चुका है। अतः इस समय मुझसे किसी तरह बुराई करने की उम्मीद न रखिए क्योंकि मैं अगर आधे घंटे के अन्दर इस मकान के बाहर होकर अपने साथियों के पास न चला जाऊँगा तो उन्हें विश्वास हो जायगा कि गदाधर- सिंह फंस गया और तब वे लोग आपको हर तरह से बर्बाद कर डालेगे, जिसका कि मैं पूरा-पूरा बन्दोबस्त कर आया हूँ।"

इतना सुनते ही दारोगा खड़ा हो गया और उसने हँस कर जवाब दिया, "मेरे लिए आपको इस कड़े प्रबन्ध की कोई आवश्यकता न थी और न मुझमें इतनी सामर्थ्य ही है कि आप जैसे ऐयार का मुकाबला करूँ, मैं तो खुद आपकी तलाश में ही था कि किसी तरह आपको पाऊँ और अपना कसूर माफ कराऊँ । मुझे तो विश्वास है कि जब आप एक बड़ा कसुर माफ कर चुके हैं तो इसको भी माफ कर देंगे । गुस्से को दूर कीजिए, फिर भी आपके लिए हाजिर हूँ।"

मैं-(बैठकर और दारोगा को बैठा कर) कसूर माफ कर देने के लिए तो कोई