सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
179
 

नहीं कह सकते कि मनोरमा के बाग में दारोगा का असली सारथी जब होश में आया होगा तो वहाँ कैसी खलबली मची होगी, मगर गिरिजाकुमार को इस बात की कुछ भी परवाह न थी, उसने रथ को रोहतासगढ़ की सड़क पर रवाना किया और चलते-चलते अपने बटुए में से मसाला निकालकर अपनी सूरत साधारण ढंग पर बदल ली, जिसमें होश आने पर दारोगा उसकी सूरत से जानकार न हो सके। इसके बाद उसने तेज दवा सुंघाकर दारोगा को और भी बेहोश कर दिया।

जब रथ एक घने जंगल में पहुंचा और सुबह की सफेदी भी निकल आई, तब गिरिजाकुमार रथ को सड़क पर से हटाकर जंगल में ले आया, जहां सड़क पर चलने वाले मुसाफिरों की निगाह न पड़े। घोड़ों को खोल लम्बी बागडोर के सहारे एक पेड़ के साथ बाँध दिया और दारोगा को पीठ पर लाद वहाँ से थोड़ी दूर पर एक घनी झाड़ी के अन्दर ले गया, जिसके पास ही एक पानी का झरना भी बह रहा था। घोड़े की रास से दारोगा साहब को एक पेड़ के साथ बांध दिया और बेहोशी दूर करने की दवा सुंघाने के बाद थोड़ा पानी भी चेहरे पर डाला, जिसमें शराब का नशा ठण्डा हो जाये और तब हाथ में कोड़ा लेक र सामने खड़ा हो गया।

दारोगा साहब जब होश में आये तो बड़ी परेशानी के साथ चारों तरफ निगाह दौड़ाने लगे। अपने को मजबूर और एक अनजान आदमी को हाथ में कोड़ा लिए सामने खड़ा देख काँप उठे और बोले, "भाई, तुम कौन हो और मुझे इस तरह क्यों सता रखा है ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"

गिरिजाकुमार--क्या करूँ, लाचार हूँ । मालिक का हुक्म ही ऐसा है।

दारोगा--तुम्हारा मालिक कौन है और उसने ऐसी आज्ञा तुम्हें क्यों दी?

गिरिजाकुमार--मैं मनोरमाजी का नौकर हूँ, और उन्होंने अपना काम ठीक करने के लिए मुझे ऐसी आज्ञा दी है।

दारोगा--(ताज्जुब से) तुम मनोरमा के नौकर हो ! नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, मैं उसके सब नौकरों को अच्छी तरह पहचानता हूँ।

गिरिजाकुमार--मगर आप मुझे नहीं पहचानते, क्योंकि मैं गुप्त रीति पर उनका काम किया करता हूँ और उनके मकान पर बराबर नहीं रहता!

दारोगा--शायद ऐसा ही हो, मगर विश्वास नहीं होता। खैर, यह बताओ कि उन्होंने किस काम के लिए ऐसा करने को कहा है?

गिरिजाकुमार--आपको विश्वास हो चाहे न हो, इसके लिए मैं लाचार हूँ, हाँ, उनके हुक्म की तामील किए बिना नहीं रह सकता। उन्होंने मुझे यह कहा है कि "दारोगा साहब मायारानी के लिए इस बात की इजाजत दे गये हैं कि वह जिस तरह हो सके, राजा गोपालसिंह को मार डाले, हम इस मामले में कुछ दखल न देंगे, मगर यह बात वह नशे में कह गये हैं, कहीं ऐसा न हो कि भूल जायें । अतः जिस तरह हो सके, तुम इस बात की एक चिट्ठी उनसे लिखाकर मेरे पास आओ, जिसमें उन्हें अपना वादा अच्छी तरह याद रहे।" अब आप कृपाकर इस मजमून की एक चिट्ठी लिख दीजिये कि मैं गोपालसिंह को मार डालने के लिए मायारानी को इजाजत देता हूँ।