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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२०

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मैंने भूतनाथ की दोस्ती को तिलांजलि दे दी और मिलना-जुलना बिल्कुल बन्द कर दिया मगर इससे कहा कुछ भी नहीं क्योंकि मैं अपनी जुबान से दारोगा को माफ कर चुका था। इसके अतिरिक्त इसने मुझ पर कुछ अहसान भी जरूर ही किये थे, उनका भी मुझे खयाल था। अस्तु मैंने कुछ कहा तो नहीं, मगर इसकी तरफ से दिल हटा लिया और फिर अपना कोई भेद भी इसको नहीं बताया। कभी-कभी इसके साथ इधर-उधर की मुलाकात हो जाती थी, क्योंकि इसे मैंने अपने मकान का तिलिस्मी रास्ता नहीं दिखाया था । अगर यह कभी मेरे मकान पर आया भी तो अपनी आँखों पर पट्टी बांध कर । यही सबब था कि इसे लक्ष्मीदेवी का हाल मालूम न हुआ। लक्ष्मीदेवी के बारे में भी मैं इसे कसूरवार समझता था और मुझे यह भी विश्वास था कि यह अपना बहुत-सा भेद मुझसे छिपाता है और वास्तव में छिपाता भी था।

भूतनाथ—(इन्द्रदेव से) नहीं, सो बात तो नहीं है, मेरे कृपालु मित्र!.

इन्द्रजीतसिंह -अगर यह बात नहीं है तो कलमदान, जिसे तुम आखिरी मर्तबे इन्दिरा के साथ दारोगा के यहाँ से उठा लाये और मुझे दे गये थे, मेरे यहाँ से कैसे गायब हो गया?

भूतनाथ-(मुस्करा कर) आपके किस मकान में से वह कलमदान गायव हो गया था?

इन्द्रजीतसिंह-काशीजी वाले मकान में से । उसी दिन तुम मुझसे मिलने के लिए वहाँ आये थे और उसी दिन वह कलमदान गायब हो गया।

भूतनाथ-ठीक है, तो उस कलमदान को चुराने वाला मैं नहीं हूं, बल्कि मेरा लड़का नानक है । मैं तो यों भी अगर जरूरत होती तो आपसे वह कलमदान मांग सकता था । दारोगा की आज्ञानुसार लाड़िली ने रामभोली बनकर नानक को धोखा दिया और अ के यहाँ से कलमदान चुरवा मंगवाया।

गोपालसिंह-हाँ ठीक है, इस बात को तो मैं भी सकारूँगा क्योंकि मुझे इसका असल हाल मालूम है । बेशक इसी ढंग से वह कलमदान वहाँ पहुंचा था और अन्त में बड़ी मुश्किल से वह उस समय मेरे हाथ लगा, जब मैं कृष्ण जिन्न बन कर रोहतासगढ़ पहुंचा था। नानक को विश्वास है कि लाड़िली ने रामभोली बनकर उसे धोखा दिया था,मगर वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। वह एक दूसरी ही ऐयारा थी जो रामभोली बनी थी,लाड़िली ने तो केवल एक ही दिन या दो दिन रामभोली का रूप धरा था।

जीतसिंह-(राजा गोपालसिंह से) वह कलमदान आपको कहाँ से मिल गया ? दारोगा ने तो उसे बड़ी ही हिफाजत से रखा होगा!

गोपालसिंह-बेशक ऐसा ही है । मगर भूतनाथ की बदौलत वह मुझे सहज ही में मिल गया। ऐसी-ऐसी चीजों को दारोगा बहुत गुप्त रीति से अपने अजायबघर में रखता था, जिसकी ताली मायारानी से लेकर भूतनाथ ने मुझे दी थी । उस अजायबघर का भेद मेरे पिता और उस दारोगा के सिवाय कोई नहीं जानता था। मेरे पिता ही ने


1.देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, चौथा भाग छठवां बयान ।

च० स०-6-1