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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३६

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ये लोग धीरे-धीरे बातचीत करते हुए उसी खोह या सुरंग की तरफ जा रहे थे।दिन पहर भर से ज्यादा न चढ़ा होगा, जब ये लोग उस ठिकाने पहुंच गए। महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह वगैरह घोड़ों पर से नीचे उतर पड़े, साईसों ने घोड़े थाम लिए और इसके बाद उन सभी ने सुरंग के अन्दर पैर रखा । इस सुरंग वाले रास्ते का कुछ खुलासा हाल हम इस सन्तति के उन्नीसवें भाग में लिख आये हैं, जब भूतनाथ यहाँ आया था, अब उसे पुनः दोहराने की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। हाँ, इतना लिख देना जरूरी जान पड़ता है कि दोनों कुमारों ने सभी को यह बात समझा दी कि यह रास्ता बन्द क्योंकर हो सकता है। बन्द होने का स्थान वही चबूतरा था जो सुरंग के बीच में पड़ता था।

जिस समय ये लोग सुरंग तय करके मैदान में पहुँचे, सामने वही छोटा बँगला दिखाई दिया, जिसका हाल हम पहले लिख चुके हैं। इस समय उस बँगले के आगे वाले दालान में दो नकाबपोश औरतें हाथ में तीर-कमान लिए टहलती पहरा दे रही थीं जिन्हें देखते ही खास करके भूतनाथ और देवीसिंह को बड़ा ताज्जुब हुआ और उनके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं । भूतनाथ का इशारा पाकर देवीसिंह ने कुंअर इन्द्र-जीतसिंह से पूछा, "ये दोनों नकाबपोश औरतें कौन हैं जो पहरा दे रही हैं?' इसके जवाब में कुमार तो चुप रह गए, मगर महाराज सुरेन्द्रसिंह ने कहा, "इसके जानने की तुम लोगों को क्या जल्दी पड़ी हुई है? जो कोई होंगी, सब मालूम ही हो जायेगा !"

इस जवाब ने देवीसिंह और भूतनाथ को देर तक के लिए चुप कर दिया और विश्वास दिला दिया कि महाराज को इनका हाल जरूर मालूम है। जब उन औरतों ने इन सभी को पहचाना और अपनी तरफ आते देखा, तो बैंगले के अन्दर घुसकर गायब हो गईं, तब तक ये लोग भी उस दालान में जा पहुँचे। इस जर भी यह बँगला उसी हालत में था जैसा कि भूतनाथ और देवीसिंह ने देखा था।

हम पहले लिख चुके हैं और अब भी लिखते हैं कि यह बंगला जैसा बाहर से सादा और साधारण मालूम होता था वैसा अन्दर से न था और यह बात दालान में पहुंचने के साथ ही सभी को मालूम हो गई । दालान की दीवारों में निहायत खूबसूरत और आलादर्जे की कारीगरी का नमूना दिखाने वाली तस्वीरों को देखकर सब कोई दंग हो गए और मुसौवर के हाथों की तारीफ करने लगे। ये तस्वीरें एक निहायत आलीशान इमारत की थीं और उसके ऊपर बड़े-बड़े हरफों में यह लिखा हुआ था-

"यह तिलिस्म चुनारगढ़ के पास ही एक निहायत खूबसूरत जंगल में कायम किया गया है, जिसे महाराज सुरेन्द्रसिंह के लड़के वीरेन्द्रसिंह तोड़ेंगे।"

इस तस्वीर को देखते ही सभी को विश्वास हो गया कि वह तिलिस्मी खंडहर जिसमें तिलिस्मी बगुला था और जिस पर इस समय निहायत आलीशान इमारत बनी हुई है पहले इसी शक्ल-सूरत में था, जिसे जमाने के हेर-फेर ने अच्छी तरह बर्वाद करके

उजाड़ और भयानक बना दिया । इमारत की उस बड़ी और पूरी तस्वीर के नीचे उसके भीतर वाले छोटे-छोटे टुकड़े भी बनाकर दिखलाए गए थे और उस बगुले की तस्वीर भी बनी हुई थी जिसे राजा वीरेन्द्रसिंह ने बखूबी पहचान लिया और कहा, "बेशक अपने

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