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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/६३

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इन्द्रदेव, तेजसिंह के साथ बातें करता रहा, इसके बाद इशारे से अर्जुन और नानक को अपने पास बुलाया और जर वे दोनों पास आ गये तो कुछ कह-सुनकर बिदा किया ।

भूतनाथ यह सब तमाशा देखकर ताज्जुब कर रहा था। अर्जुन और नानक को बिदा करने के बाद तेजसिंह को साथ लिए हुए इन्द्रदेव महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास गया जो एक सुन्दर चट्टान पर खड़े-खड़े ढलवां जमीन और पहाड़ी पर से नीचे की तरफ गिरते हुए सुन्दर झरने की शोभा देख रहे थे और वीरेन्द्रसिह भी उन्हीं के पास खड़े थे। वहाँ भी कुछ देर तक इन्द्रदेव ने महाराज से बातचीत की और इसके बाद चारों आदमी लौटकर बगीचे में चले आये। महाराज को बगीचे में आते देख और सब लोग भी जो इधर-उधर फैले हुए तमाशा देख रहे थे, बगीचे में आकर इकट्ठे हो गए और अब मानो महाराज का यह एक छोटा-सा दरबार बगीचे में ही लग गया।

वीरेन्द्रसिंह-(इन्द्रदेव से) हाँ, तो अब वे तमाशे कब देखने में आवेंगे जो आप अपने साथ तिलिस्म में लेते गये थे?

इन्द्रदेव--जब आज्ञा हो तभी दिखाये जायें।

वीरेन्द्रसिंह--हम लोग तो देखने के लिए तैयार बैठे हैं।

जीतसिंह--मगर पहले यह मालूम हो जाना चाहिए कि उनके देखने में जितना समय लगेगा, अगर थोड़ी देर का काम हो तो अभी देख लिया जाय ।

इन्द्रदेव--जी, वह थोड़ी देर का काम तो नहीं है। इससे यही बेहतर होगा कि पहले जरूरी कामों से छुट्टी पाकर स्नान-ध्यान तथा भोजन इत्यादि से निवृत्त हो लें।

महाराज--हमारी भी यही राय है।

महाराज का मतलब समझ कर सब कोई उठ खड़े हुए और जरूरी कामों से छुट्टी पाने की फिक्र में लगे। महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह तथा और भी सब कोई

इन्द्रदेव के उचित प्रबन्ध को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। किसी को किसी तरह की तकलीफ न हुई और न कोई चीज मांगने की जरूरत ही पड़ी। इन्द्रदेव के ऐयार और कई खिदमतगार आकर मौजूद हो गये और बात की बात में सब सामान ठीक हो गया।

स्नान तथा संध्या-पूजा इत्यादि से छुट्टी पाकर सभी ने भोजन किया और इसके बाद इन्द्रदेव ने (बँगले के अन्दर) एक बहुत बड़े और सजे हुए कमरे में सभी को बैठाया जहाँ सभी के योग्य दर्जे-ब-दर्जे बैठने का इन्तजाम किया गया था। एक ऊंची गद्दी पर महाराज सुरेन्द्रसिंह और उनके दाईं तरफ वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ, रामनारायण, पन्नालाल तथा भूतनाथ वगैरह बैठे।

कुछ देर तक इधर-उधर की बातचीत होती रही। इसके बाद इन्द्रदेव ने हाथ जोड़कर पूछा-"अब यदि आज्ञा हो तो तमाशों को...

महाराज--हाँ-हाँ, अब तो हम लोग हर तरह से निश्चिन्त हैं।

सलाम करके इन्द्रदेव कमरे के बाहर चला गया और घड़ी भर तक लौट के नहीं आया, इसके बाद जब आया तो चुपचाप अपने स्थान पर आकर बैठ गया। सब कोई (भूतनाथ, पन्नालाल वगैरह) ताज्जुब के साथ उसका मुंह देख रहे थे कि इतने में ही सामने वाले दरवाजे का परदा हटा और नानक कमरे के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया,