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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/६५

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चन्द्रकान्ता सन्तति

बाईसवाँ भाग

1

भूतनाथ की अवस्था ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। कुछ देर तक सन्नाटा रहा और इसके बाद इन्द्रदेव ने पुनः महाराज की तरफ देखकर कहा-

"महाराज, ध्यान देने और विचार करने पर सबको मालूम होगा कि आजकल आपका दरबार 'नाट्यशाला' (थियेटर का घर) हो रहा है। नाटक खेलकर जो-जो बातें दिखाई जा सकती हैं, और जिनके देखने से लोगों को नसीहत मिल सकती है तथा मालूम हो सकता है कि दुनिया में जिस दर्जे तक के नेक और बद, दुखिया और सुखिया, गम्भीर और छिछोरे इत्यादि पाये जाते हैं, वे सब इस समय (आजकल) आपके यहाँ प्रत्यक्ष हो रहे हैं। ग्रह-दशा के फेर में जिन्होंने दुःख भोगा वे भी मौजूद हैं और जिन्होंने अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मारी, वे भी दिखाई दे रहे हैं, जिन्होंने अपने किए का फल ईश्वरेच्छा से पा लिया है, वे भी आए हुए हैं, और जिन्हें अब सजा दी जायेगी, वे भी गिरफ्तार किए गए हैं। बुद्धिमानों का यह कथन है, कि 'जो बुरी राह चलेगा, उसे बुरा फल अवश्य मिलेगा' ठीक है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अच्छी राह चलने वाले तथा नेक लोग भी दुःख के चंगुल में फंस जाते हैं, और दुर्जन तथा दुष्ट लोग आनन्द के साथ दिन काटते दिखाई देते हैं। इसे लोग ग्रह-दशा के कारण कहते हैं, मगर नहीं,इसके सिवाय कोई और बात भी जरूर है। परमात्मा की दी हुई बुद्धि और विचारशक्ति का अनादर करने वाले ही प्रायः संकट में पड़कर तरह-तरह के दुःख भोगते हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि इस समय अथवा आजकल आपके यहाँ सब तरह के जीव दिखाई देते हैं, दृष्टान्त देने के बदले केवल इशारा करने से काम निकलता है। हाँ, मैं यह कहना इन्हीं में ऐसे भी जीव आए हुए हैं, जो अपने किए का नहीं, बल्कि अपने सम्बन्धियों के किए हुए पापों का फल भोग रहे हैं, और इसी से नाते (रिश्ते) और सम्बन्ध का गूढ़ अर्थ भी निकलता है। बेचारी लक्ष्मीदेवी की तरफ देखिए, जिसने किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा, और फिर भी हद दर्जे की तकलीफ उठाकर भी ताज्जुब है कि जीती बच गई । ऐसा क्यों हुआ? इसके जवाब में मैं तो यही कहूँगा कि राजा गोपालसिंह की बदौलत जो बेईमान दारोगा के हाथ की कठपुतली हो रहे थे, और इस बात की कुछ तो भूल गया,