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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/६८

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तरफ देखा।

सुरेन्द्रसिंह-भूतनाथ, यद्यपि हम लोग तुम्हारा कुछ-कुछ हाल जान चुके हैं,मगर फिर भी तुम्हारा पूरा-पूरा हाल तुम्हारे ही मुंह से सुनने की इच्छा रखते हैं। तुम बयान करने में किसी तरह का संकोच न करो। इससे तुम्हारा दिल भी हल्का हो जायेगा, और दिन-रात जो तुम्हें खुटका बना रहता है, वह भी जाता रहेगा।

भूतनाथ-जो आज्ञा !

इतना कहकर भूतनाथ ने महाराज को सलाम किया और अपनी जीवनी इस तरह बयान करने लगा-

भूतनाथ को जीवनी

भूतनाथ-सबके पहले मैं वही बात कहूँगा, जिसे आप लोग अभी नहीं जानते,अर्थात् मैं नौगढ़ के रहने वाले और देवीसिंह के सगे चाचा जीवनसिंहजी का लड़का हूँ ।मेरी सौतेली माँ मुझे देखना पसन्द नहीं । ती थी और मैं उसकी आँखों में काँटे की तरह गड़ा करता था। मेरे ही सबब से मेरी माँ की इज्जत और कदर थी और उस बाँझ को कोई पूछता भी न था, अतएव वह मुझे दुनिया से ही उठा देने की फिक्र में लगी और यह बात मेरे पिता को भी मालूम हो गई, इसलिए जबकि मैं आठ वर्ष का था तो मेरे पिता ने मुझे अपने मित्र देवदत्त ब्रह्मचारी के सुपुर्द कर दिया जो तेजसिंह गुरु थे और महात्माओं की तरह नौगढ़ की उसी तिलिस्मी खोह में रहा करते थे,जिसे राजा वीरेन्द्रसिंहजी ने फतेह किया। मैं नहीं जानता कि मेरे पिता ने मेरे विषय में उन्हें क्या समझाया और क्या कहा, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि ब्रह्मचारी मुझे अपने लड़के की तरह मानते, पढ़ाते-लिखाते और साथ-साथ ऐयारी भी सिखाते थे, परन्तु जड़ी-बूटियों के प्रभाव से उन्होंने मेरी सूरत में बहुत बड़ा फर्क डाल दिया था,जिसमें मुझे कोई पहचान न ले । मेरे पिता मुझे देखने के लिए बराबर उनके पास आया करते थे।

इतना कहकर भूतनाथ कुछ देर के लिए चुप रह गया और सबके मुंह की तरफ देखने लगा!

सुरेन्द्रसिंह--(ताज्जुब के साथ) ओफ-ओह ! क्या तुम जीवनसिंह के वही लड़के हो, जिसके बारे में उन्होंने मशहूर कर दिया था कि उसे जंगल में से शेर उठा ले गया ?

भूतनाथ--(हाथ जोड़कर) जी हाँ !

तेजसिंह--और आप वही हैं, जिसे गुरुजी 'फिरकी' कहकर पुकारा करते थे,क्योंकि आप एक जगह ज्यादा देर तक बैठते न थे ।

भूतनाथ--जी हां।

1. चन्द्रकान्ता पहले भाग के छठे बयान में तेजसिंह ने अपने गुरु के बारे में राजा वीरेन्द्रसिंह से कुछ कहा था।