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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८३

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इसी से समझ जाइये और मैं क्या कहूँ !

तेजसिंह-ठीक है, अच्छा तब क्या हुआ? भूतनाथ की कथा इतनी ही है, या और भी कुछ ?

दलीपशाह-जी अभी भूतनाथ की कथा समाप्त नहीं हुई, अभी मुझे बहुत-कुछ कहना बाकी है। और बातों के सिवाय भूतनाथ से एक कसूर ऐसा हुआ है जिसका रंज भूतनाथ को इससे भी ज्यादा होगा।

तेजसिंह–सो क्या?

दलीपशाह–सो भी मैं अर्ज करता हूँ।

इतना कहकर दलीपशाह ने फिर कहना शुरू किया-

इस मामले को वर्षों बीत गये । मैं भूतनाथ की तरफ से कुछ दिनों तक बेफिक रहा, मगर जब यह मालूम हुआ कि भूतनाथ मेरी तरफ से निश्चिन्त नहीं है बल्कि मुझे इस दुनिया से उठा, बेफिक्र हुआ चाहता है तो मैं भी होशियार हो गया और दिन-रात अपने बचाव की फिक्र में डूबा रहने लगा। (भूतनाथ की तरफ देखकर) भूतनाथ, अब मैं वह हाल बयान करूँगा जिसकी तरफ उस दिन मैंने इशारा किया था, जब तुम हमें गिरफ्तार करके एक विचित्र पहाड़ी स्थान में ले गये थे और जिसके विषय में तुमने कहा था कि-"यद्यपि मैंने दलीपशाह की सूरत नहीं देखी है" इत्यादि । मगर क्या तुम इस समय भी...

भूतनाथ--(बात काटकर) भला मैं कैसे कह सकता हूँ कि मैंने दलीपशाह की सुरत नहीं देखी है जिसके साथ ऐसे-ऐसे मामले हो चुके हैं, मगर उस दिन मैंने तुम्हें भी धोखा देने के लिए वे शब्द कहे थे, क्योंकि मैंने तुम्हें पहचाना नहीं था। इस कहने से मेरा मतलब था कि अगर तुम दलीपशाह न होगे तो कुछ न कुछ जरूर बात बनाओगे। खैर, जो कुछ हुआ सो हुआ। मगर तुम वास्तव में अब उस किस्से को बयान करने वाले हो?

दलीपशाह--हां, मैं उसे जरूर बयान करूँगा।

भूतनाथ--मगर उसके सुनने से किसी को कुछ फायदा नहीं पहुंच सकता और न किसी तरह की नसीहत ही हो सकती है। वह तो महज मेरी नादानी और पागलपने की बात थी। जहाँ तक मैं समझता हूँ, उसे छोड़ देने से कोई हर्ज नहीं होगा।

दलीपशाह--नहीं, उसका बयान जरूरी जान पड़ता है। क्या तुम नहीं जानते या भूल गये कि उसी किस्से को सुनने के लिए कमला की भां, अर्थात् तुम्हारी स्त्री यहाँ आई हुई है?

भूतनाथ-ठीक है, मगर हाय ! मैं सच्चा बदनसीब हूँ जो इतना होने पर भी उन्हीं बातों को

इन्द्रदेव--अच्छा-अच्छा, जाने दो भूतनाथ ! अगर तुम्हें इस बात का शक है कि दलीपशाह बातें बनाकर कहेगा या उसके कहने का ढंग लोगों पर बुरा असर डालेगा तो

1. देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति बीसवां भाग, बारहवां बयान ।