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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९९

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मुझे सुनाई हैं इसलिए आपका अहसान भी तो मानना होगा।

इतना कहते हुए देवीसिंह पेड़ों की आड़ लेते हुए भूतनाथ की तरफ रवास हुए और जब ऐसी जगह पहुंचे जहां से उन दोनों की बातें बखूबी सुन सकते थे, तब एक चट्टान पर बैठ गये और सुनने लगे कि वे दोनों क्या बातें करते हैं !

भूतनाथ--खैर, अच्छा ही हुआ जो तुम यहाँ तक आ गईं, मुझसे मुलाकात भी हो गई और मैं 'लामाघाटी' तक जाने से बच गया। मगर अब यह तो बताओ कि अपनी सहेली 'नन्हीं' को यहाँ तक क्यों न लेती आई, मैं भी जरा उससे मिल के अपना कलेजा ठण्डा कर लेता?

रामदेई--नन्हीं बेचारी पर क्यों आक्षेप करते हो, उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? और वह यहाँ आती ही काहे को? क्या तुम्हारी लौंडी थी ! व्यर्थ ही एक आदमी को बदनाम और दिक करने के लिए टूटे पड़ते हैं !

भूतनाथ--(उभड़ते हुए गुस्से को दबा कर) छी-छी, वह बेचारी हमारी लौंडी क्यों होने लगी, लौंडी तो तुम उसकी थीं जो झख मारने के लिए उसके घर गई थीं।

रामदेई--(आंचल से आँसू पोंछती हुई) अगर मैं उसके यहाँ गई तो क्या पाप किया ? मैं पहले ही नानक से कहती कि जाकर पूछ आओ तब मैं नन्हीं के यहाँ जाऊँ नहीं तो कहीं व्यर्थ ही बात का बतंगड़ न बन जाय । मगर लड़के ने न माना और आखिर वही नतीजा निकला। बदमाशों ने वहां पहुंच कर उसे भी बेइज्जत किया और मुझे भी बेइज्जत करके यहाँ तक घसीट लाये । उसके सिर झूठे ही कलंक थोप दिया कि वह बेगम की सहेली है।

इतना कहकर रामदेई नखरे के साथ रोने लगी।

भूतनाथ--तुमने पहले भी कभी उसका जिक्र मुझसे किया था कि वह तुम्हारी नातेदार है, या मुझसे पूछ कर कभी उसके यहाँ गई थीं?

रामदेई--एक दफा गई सो तो यह गति हुई, यदि और जाती तो न मालूम क्या होता!

भूतनाथ--जो लोग तुझे यहाँ ले आये हैं वे बदमाश थे ?

रामदेई--बदमाश तो कहे ही जाएँगे ! जो व्यर्थ दूसरों को दुःख दें वेही बदमाश होते हैं और क्या बदमाशों के सिर पर सींग होते हैं! तुम्हारी अक्ल पर तो पत्थर पड़ गया है कि जो लोग तुम्हारी बेइज्जती किये ही जाते हैं, उन्हीं के लिए तुम जान दे रहे हो । न मालूम तुम्हें ऐसी क्या गरज पड़ी हुई है ?

भूतनाथ-–ठीक है, यही राय लेने के लिए तो मैंने तुम्हें यहाँ एकान्त में बुलाया है । अगर तुम्हारी राय होगी तो मैं बते-देखते इन लोगों से बदला ले लूंगा, क्या मैं कमजोर या दब्बू हूँ !

रामदेई--जरूर बदला लेना चाहिए, अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो मैं समझूगी कि तुमसे बढ़कर कमीना कोई नहीं है ।

इतना सुनकर भूतनाथ को बेहिसाब गुस्सा चढ़ आया मगर फिर भी उसने अपने क्रोध को दबाया और कहा-