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पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४१

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्तः सन्तति यूपी चन्द कर दी गई ! उनकी नाउम्मीदी हर तरह बढ़ने लगी, उन्होंने समझ लिया कि अब चपला से मुलाकात न होगी और बाहर हमारे छुड़ाने के लिए क्या फया तक हो रही है इसका पता बिल्कुल न लगेगा ! सुरंग की नई ताली जो चपला ने बनवाई यी वह उसी के पास थी । तो भइन्द्रजीतसिंह ने हिम्मत न हारी, उन्होंने जी मै ठान लिया कि अब जबर्दस्ती से काम लिया जायगा, जितनी औरतें यह मौजूद हैं सुभं की मुश्कें बाध नहर के किनारे डाल देंगे और सुरग की असली तालो माधवी के पास से लेकर सुर ग की राह माधवी के महल में पहुच कर खूनखराबा मचानेंगे ! अाखिर क्षत्रियों को इससे बड कर लडने भिड़ने और जान देने का कौन सा समय हाथ लगेगा ! अगर ऐसा करने के लिये सच से पहिले सुर ग को तालो अपने कब्जे में कर लेना मुनासिब है, नहीं तो मुझे बिगड़ा हुआ देख जब तक मैं दो चार श्रीरत की मुश्के बाधू सत्र सुर ग को राइ भाग जायगी, फिर मेरा मतलब जैसा मैं चाहती हैं सिद्ध न होगा ।।। इन्द्रजीतसिंह ३ सुरग की ताली लेने के लिए बहुत कोशिश की मगर ने ले सके क्योंकि अब वह ताली उस जगह से जहा पहिले रहती थो इटा कर किसी दूसरी जगह रख दी गई थी ।। सातवीं बयान अपम में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की मुफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझ कर कि दीपान साहब को छोड महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती ३ से म्युरा हा { कोतवाल साक्ष्य के गुमान में भी न था कि वे ऐया के फेर में पड़े हैं। उनके इन्द्रजीतसिंह के कैद होने श्री वीरेन्द्रसिंह के ऐसा है यहां पहुंचने की खबर हो न थी । वह तो जिस तरह