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पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२२७

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तर्वि | कमर में खस र फुर्ती से उस घड़े पर सवार हो गई और देखते ही देखते जङ्गल में घुस कर नजरों से गायब हो गई। नानकप्रसाद यह तमाशा देख भौंचक सा रह गया, कुछ करते धरते पन न पड़ा, ने मुँह से कोई आवाज निकली और न हीथ के इशारे ही | कुछ पूछ सका | पूछत भी तो किसमे १ रामभोली ने तो नजर उठा कर उसकी तरफ देखा तक नहीं । नानक बिल्कुल नहीं जानता था कि यह सुख पोशाक वाली औरत है कोन जो यकायक यहा आ पहुँची और जिसने इशारेबाजी करके रामभोली को अपने घोड़े पर सवार कर भग दिया । वह औरत नानक के पास आई और हँR के न्योली :-- श्रीरत० । वह औरत जो तेरे साथ थी मेरे घोड़े पर सवार होकर चली गई, खैर कोई हर्ज नहीं, मगर तू उदास क्यों हो गया है क्या तुमसे और उससे कई रिश्तेदारी है । . नानक - 1 रिश्तेदारी थी तो नहीं मगर होने वाली थी, तुमने सब चौपट कर दिया । औरत० { (मुरकुर कर) क्या उससे शादी करने पर धुन समाई थी। नन·० । चेक ऐसा ही था । वह मेरी हो चुकी थी, हुई नहीं सानतीं कि मैंने उनके लिये कैसी कैमरे तक्लफ उठाई। अपने ५ दादे की जमदरी चौपट की और उसकी गुलामी करने पर तैयार हुआ । अौरत० । ( वैठ कर } किसकी गुलामी ? । नाक० | उसी रामभोली सो, जो तुम्हारे घोड़े पर सवार हो कर चली गई ।। । शरत० । ( चाक फर ) क्या नाम लिया, जरा फिर तो कहो ? | नान५ । मभो । । ग्त० 1 ( हँस कर ) बहुत ठीक, तू मेरी सी अर्थात् उस शौरत को झय से पानता है ।। । मान० 1 ( कुछ चिढ कर प्रौर मुँह बना कर ) उसे मैं लदकपन