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मिलाकर हमारी समझ में प्रसाद जी के बड़े नाटको में यह सर्वश्रेष्ठ है । इसमें कल्याणी-परिणय' भी यथा-प्रसंग परिवर्तित और परिवर्द्धितहोकर सम्मिलित हो गया है ।
यह ग्रंथ दो वर्ष पहले ही प्रेस में दे दिया गया था, किन्तु ऐसे कारण असे गए कि यह अवके पहले प्रकाशित न हो सका ; हमें इसका खेद है।
अस्तु, यह वर्षों का अन्वेषण-पूर्ण उद्योग आज इस रूप में हम पाठकों के सामने बड़े हर्ष के साथ उपस्थित करते हैं ।
रथयात्रा, '८८
( पहले संस्करण से )