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पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/२०९

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दृश्य १ ]
चाँदी की डिबिया
 

बार्थिविक

चुप रहो।

[ रोपर से बातें करते हुए मुंह छिपाकर ]

रोपर, अच्छा हो कि तुम अब खड़े हो जाओ और कह दो कि और सब बातों और क़ैदियों की ग़रीबी का ख़याल करके हम इस मुक़दमे को और आगे नहीं बढ़ाना चाहते। और अगर मैजिस्ट्रेट साहब इसे उस आदमी का फ़िसाद समझ कर काररवाई करें---

गंजा कांस्टेबिल

खामोश!

[ रोपर सिर हिलाता है ]

मैजिस्ट्रेट

अच्छा, अब अगर यह मान लिया जाय कि जो कुछ तुम कहती हो वह सच है और जो कुछ तुम्हारा शौहर कहता है वह भी सच है तो मुझे यह विचार करना पड़ेगा कि वह कैसे घर के अन्दर

२०१