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पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/३५

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दृश्य ३ ]
चाँदी की डिबिया
 

हैं। हम खूब जानते हैं कि उनका क्या मंशा है। वे सब कुछ अपने लिए चाहते हैं। ये साम्यवादी और मजूर दल के लोग परले सिरे के मतलबी हैं; न उनमें देशभक्ति है। ये सब ऊँचे दरजे के लोग हैं। वे भी वही चाहते हैं, जो हमारे पास मौजूद है।

बार्थिविक

जो हमारे पास है वह चाहते हैं!

[ आकाश की ओर देखता है ]

तुम क्या कहती हो प्रिये?

[ मुँह बनाकर ]

मैं कान के लिये कौवे के पीछे दौड़नेवालों में नहीं हूं।

मिसेज़ बार्थिविक

मलाई दूँ? सबके सब बौखल हैं। देखते जाव थोड़े दिनों में हमारी पूंजी पर टैक्स लगेगा। मुझे तो विश्वास है, कि वह हर एक चीज पर कर लगा

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