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पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/३३

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वित्रणा राधाकांत-किसान जितने भाप भाई हैं, उतना ही रामधन मी पापा माई है, या यात प्रापको माननी पड़ेगी। शिवकुमार-~हो, मैं मानता हूँ। राधाकांत-यापने यह भी सोचा कि टस जेज चले जाने ये उसके निःसहाय परिवार की क्या दशा होगी? शिवकमार-क्या होगी? राधाकांत-और क्या, श्राप के कयन से मालूम हुआ कि अपने परिवार का पालन-पोपण करनेवाला येवज्ञ वही था। ऐसी दशा में प्रव उसके परिवार का पालन-पोपण कौन करेगा? शिवकुमार के हृदय पर राधाकांत की बात का गहरा प्रभाव पड़ा । राधादांत कहते गए.---यह मैं मानता हूँ कि रामधन के व्यव- हार से किसानों को ट पहुंचता था, परंतु आपने रामधन और उसके परिवार को उससे कहीं अधिक कष्ट पहुंचाया है। केवल इतना ही नहीं, नापने उस बेचार का जीवन नष्ट कर दिया । उसका परिवार भूलों मरेगा । रामधन जेल से छूट भी पायेगा, तब भी सजायापता होने के कारण न तो उसे सरकारी नौकरी ही मिलेगी और न उसे कोई भला आदमी हो, जिसे उसके सजायाफ्ता होने की बात मालूम हो जायगी, अपने यहाँ काम देगा? ऐसी दशा में उसका जीवन नष्ट हो गया या रहा ? बाबू शिवकुमार को अपनी भून का कुछ ज्ञान हुआ, पर वे अभी अपनी भूल स्वीकार करने के लिये प्रकट रूप से प्रस्तुत न ये। अतएव उन्होंने कहा-तो क्या शापका मंशा है कि उसे किसानों पर अत्याचार करते रहने देता? राधाकांत-मैं यह नहीं कहता। मैं तो केवल यह कहता हूँ कि यह सच्ची देश भक्ति नहीं। देश भक्त का यह कर्तव्य है कि वह समस्त देशवासियों के कष्टों का ध्यान रक्खे । इसके क्या अर्थ है कि