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पृष्ठ:छाया.djvu/४

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श्रीयुत् बाबू जयशंकर 'प्रसाद' जी हिन्दी के स्वनामधन्य सुकवि और यशोधन सुलेखक हैं। साहित्य-संसार में उनका शुभ नाम स्वतः देदीप्यमान हो रहा है। उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा और सुधामुखी लेखनी का प्रसाद पाकर हिन्दी विशेष गौरवान्वित हुई है।

कविता, नाटक, कहानी, इतिहास आदि अनेक क्षेत्रो में 'प्रसाद' जी की कीर्ति-लता लहलहा रही है। कविता और कहानी के क्षेत्र में तो उन्होंने अभिनय युगान्तर उपस्थित कर दिया है। नाटकों की रचना में भी वह अप्रतिम हैं। उनकी प्रायः सभी रचनाएँ बड़े उच्च कोटि की और अतुलनीय हैं।

छाया, प्रसाद जी की सं॰ १९१२ से सं॰ १९१८ तक की लिखी कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों का सर्व प्रथम प्रकाशन 'इन्दु' में हुआ था। इस पुस्तक के प्रथम संस्करण में केवल ५ कहानियाँ थीं। दूसरे संस्करण में इसमें ११ कहानियाँ संगृहित की गयी थीं। तृतीय संस्करण में इन कहानियों का संस्कार भी लेखक ने किया ; अतः ये अपने पूर्व रूप से कुछ भिन्न हो गयी। आज भी प्रसाद-साहित्य के अध्ययन करने के लिये इन कहानियों को पढ़ना आवश्यक है। प्रसाद जी की शैली और भावना के विकास की सीढ़ी इन कहानियों से चढ़ी जा सकती है। इस महत्वपूर्ण संग्रह से हिन्दी के पाठक लाभ उठावेंगे।

—प्रकाशक