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पृष्ठ:छाया.djvu/६०

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छाया
५६
 


युवक---नहीं महाशय, क्षमा कीजिये । हम लोग आशा करते है कि सन्धि के अनुसार हम लोग अपने देश को शान्तिपूर्वक लौट जायँगे, इसमें बाधा न डाली जायगी।

ग्रीक---क्या तुम लोग इस बात पर वृढ़ हो ? एक बार और विचारकर उत्तर दो, क्योंकि उसी उत्तर पर तुम लोगों का जीवन- मरण निर्भर होगा।

इस पर कुछ राजपूतों ने समवेत स्वर से कहा--हां-हां, हम अपनी बात पर दृढ़ है, किन्तु सिकन्दर, जिसने देवताओं के नाम से शपथ ली है, अपनी शपथ को न भूलेगा।

ग्रीक---सिकन्दर ऐसा मूर्ख नहीं है कि आये हुए शत्रुओं को और दृढ़ होने का अवकाश दे। अस्तु, अब तुम लोग मरने के लिये तैयार हो।

इतना कहकर वह ग्रीक अपने घोड़े को घमाकर सीटी बजाने लगा, जिसे सुनकर अगणित ग्रीक-सेना उन थोड़े-से हिन्दुओं पर टूट पड़ी। इतिहास इस बात का साक्षी है कि उन्होंने प्राण-पण से युद्ध किया और जब तक कि उनमें एक भी बचा, बराबर लड़ता गया । क्यों न हो, जब उनकी प्यारी स्त्रियां उन्हें अस्त्रहीन देखकर तलवार देती थीं और हँसती हुई अपने प्यारे पतियों की युद्ध-क्रिया देखती थीं ।रणचण्डियां भी अकर्मण्य न रही, जीवन देकर अपना धर्म रखा ।ग्रीकों की तलवारों ने उनके बच्चों को भी रोने न दिया, क्योंकि पिशाच सैनिकों के हाथ सभी मारे गये।

अज्ञान स्थान में निराश्रय होकर उन सब वीरों ने प्राण दिये।

भारतीय लोग उनका नाम भी नहीं जानते !

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