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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१०५

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जगद्विनोद । (१०६) अथ त्रासका उदाहरण-सवैया ॥ ये ब्रजचन्दगोविन्द गोपालसुन्योनक्योंकेतेकलाम किये मैं । त्यों पदमाकर आनन्दके दहौं नंदनन्दन जानिलिये मैं॥ माखनचोरीकै खोरिनकैचलेभाजिकछू भयमानि निये मैं । दूरिहूंदौरिदुरचो जोचहो तो दुरौकिनमेरे अँधेरे हिये मैं ॥ दोहा-शिशिर शीत भयभीत कछु, सुपरि प्रीतिकै पाय । आपहिते तजि मान तिय, मिली प्रीतिमें जाय ॥ अविचारित आचरन जो, सो उन्माद बखान । व्यर्थ वचन रोदन हँसी, ये स्वभाव तहँजान ।। अथ उन्मादका उदाहरण-सवैया ॥ आपहिंआपपै रूपिरही कबहूं पुनि आपहिं आप मनावै । त्यों पदमाकर ताके तमालनि भेटिबेको कबहूं उठिधावै ॥ जोहाररावरोचित्रलि तौकहूं कबहूँ हँसिहेरि बुलावै । व्याकुलबालमुआलिनसोंकह्योचाहैकछूतौ कछूकहि आवै ॥ दोहा-छिनरोवतिछिनहँसिउठति, छिनबोलति छिनमौन, छिन छिन पर छीनी परति, भईदशाधौंकौन ॥१७॥ गमनज्ञान आचरणकी, रहै न जहँ सामर्थ ॥ हित अनहित देखै सुनै, जड़ता कहत समर्थ ॥९८॥ कवित्त-आज बरसाने की नवेली अलबेली बधू, मोहन विलोकिबेको लाज काज लैरही। छना छज्जा झांकती झरोसनिझरोखनिदै,