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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१२४

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(१२४) जगद्विनोद । तौहीं लग चैन जौलौं चेती है न चन्द्रमुखी. चेतैगी कहूंत चांदनी में चुरि जायगी ॥ ६० ॥ दोहा-तौही तो भल अवधलौं, रहैं जु तिय निरमूल । नहिं तौक्यों कार जियहिगी, निरखि शूलसे फूल ॥ इति शृङ्गाररस वर्णन ॥ अथ हास्यरस वर्णन ॥ दोहा--थायी जाको हास है, वहै हास्य रस जानि । तहँ कुरूप कुंदब कहब, कछु विभावते मानि ॥ भेद मध्य अरु ऊँचस्वर, हँसबोई अनुभाव । हर्ष चपलता औरहू, तहँ सञ्चारी भाव ॥ ६३ ॥ श्वेत रंग रस हास्यको, देव प्रथम पति जास । ताको कहत उदाहरण, सुनत जो आवै हास ॥६॥ हास्यरसका उदाहरण ॥ कवित्त-हँसिहँसिमजै देखि दूलह दिगम्बरको, पाहुनी जे आवै हिमाचलके उछाहमें । कहै पदमाकर सुकाहूसों कहैको कहा, जोई जहां देखै सो हँसेई तहां राहमें ॥ मगन भयेई हँसै नगन महेशठाढ़े, और हँसेऊ हँसो हँसकै उमाहमें । शीशपर गंगाहँसै भुजनि भुजंगा हँसै, हांसहीको दंगाभयो नङ्गाके विवाहमें ॥ ६५ ॥ दोहा-कर मूसर नाचत नगन, लधि हलधरको स्वांग ।