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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१३१

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जगद्विनोद। (१३१) माजि धायो ये दई दईधौं कहा चाही है । कौन को कलेऊ धौ करैया भयो फालअरु, कापै यो परैया भयो गजब इलाही है॥१०॥ पुनर्यथा ॥ कवित्त-ज्वालाकी जलनसी जलाक जंग जालनकी, जौरकी जमाहै जोम जुलुम जिलाहेकी । कहै पदमाकर सु रहियो बचाये जग, जालिम जगतसिंह रंग अवगाहेकी ॥ दौरि दावादारनपै द्वारसौ दिवाकरकी, दामिनी दमकनि दलेल दिग दाहेकी । कालकी कुटुम्बिन कलाहै कुल्लि कालिकाकी, कहरकी कुन्तकी नजरिकछवाहेकी ॥३॥ छप्पर-भुवन धुंधुरित धूलि धूलि धुंधुरित सुधूमहु । पदमाकर परतक्ष स्वच्छ लखि परत न भूमहु । भग्गत र परि पग्ग मग्ग लग्गत अगअग्गनि । तहँ प्रतापपृथिपाल ख्याल खेलत खुलिखग्गनि । तहँ तबहिं तोपि तुंगनि तडपि तंतडानतेगनि तडकि धुकि धड़धड़धड़धड़धड़ाधड़धड़धड़ाततद्धाधड़कि २ दोहा-एक और अजगरहि लखि, एक ओर मृगराइ । विकल बटोही बीचही, परो मूरछा साइ ॥ ३ ॥ -