सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जगद्विनोद । (१२) ऐसी धनधन्य धनीधन्य है सुवैसोजाहि । फूलकी छरीसों खरी हनति हरै हरै ॥ ३८॥ दोहा--नेह तरेरे हग नहीं, राखन क्यों न अंगोट । छैल छबीलेपर कहा, करति कमलकी चोट ॥६॥ रतिते रूखी है जहां, दुरजु दिखावै बाम । प्रौढाधीर अधीरतिय, ताहि कहत रसधाम ॥ ७.॥ अथ प्रौढा धीरा अधीराका उदाहरण ।। कवित्त- छबि छलकन भरी पीक पलकन त्यौहीं, श्रम जलकन अलकन अधिकानेहै। कहै पदमाकर सुजानि रूपखानितिया, ताही ताकि रही ताहि आपुहि अजानेकै ॥ परसतगात मनभावनको भावतीकी, गईचढ़ि भौहेरही ऐसी उपमान है। मानो अरविंदनपै चन्द्रको चढ़ायदीनी, मानकमत बिनरोदाकी कमानत ॥ ७१ ॥ दोहा--अन्तरमै पतिकी सुरति, गहिगहिगहकि गुनाह । दृगमरोरि मुखमोरितिय, छुवनदेति नहिं छाह । वर्णत ज्येष्ठ कनिष्ठिका, जहँ व्याही तियदोय । पियप्यारी ज्येष्ठाकही, अनप्यारी लघुसोय ॥ ७३॥ अथ ज्येष्ठा कनिष्ठाका उदाहरण । कवित्त-दोऊ छबि छाजती छबीली मिलि आसनपै, जिनहिं विलोकि रह्यो जातन जित जिते ।