सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(६०) जगद्विनोद। पुनर्यमा सर्वया ॥ ऐसे कढ़े गनगोपिनके तन मानो मनोभव भाइसेकाढ़े ॥ कहै पदमाकर खालनके डफ बाजि उठे गलगाजतगाढ़े ॥ छोकछकेछ लहाइनमें छिक पा न छैलछिनौछविचाढ़े ॥ केसरलौं मुख मीजिबे को रस भीजतसे करमीजतठाढ़े ॥ दोहा-जाहिर जाइ न सके तहँ, घरहायनके त्रास । परे रहत नित कान्ह के, प्राण परोसिन पास १०० वैसिकका उदाहरण सवैया ।। छोरतही जुछुराकेछिनो छिन छायेतहाइ उमंगअदाके । त्यों पदमाकर जेमिसकीनके शोरप. मुखमोरिमजाके । दैधनधामधनी अबते मनहींमन मानि समान सुधाके । बारबिलासिनतीके जपे अखराअखरा न खराअखराके । दोहा-हेरिह हरनी कांति वह, सुनिसी करति सुभांति । दियो सौंपि मनताहिती, धनकी कहा बिसाँति॥२॥ औरो तीन प्रकारके, नासक भेद बखान । मानीसुवसन चतुर पुनि, किया चतुर पहिचान॥३॥ करै जुतियपै मानपिय, मानी कहिये ताहि । करे वचनकी चातुरी, वचन चतुरसो आहि ॥४॥ करै क्रियासों चातुरी, क्रियाचतुर सो जान । इनके उदित उदाहरण, कमते कहत बखान ॥५॥ मानीका उदाहरण-सर्वया ॥ बालबिहालपरी कबकीदवकी यह प्रीतिकीरीतिनिहारो॥