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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/६९

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जगद्विनोद । (६९) अथ परिहा उदाहरण सवैया ॥ भाई भले दुत चाल तू चातुर आतुर मोहनके मनभाई । सौतिनके सरको पदमाकर पाइ कहां व इती चतुराई । मैं न सिखाई सिखाई समै नहियों कहि रैनिकीबातजवाई । ऊपर ग्वालि गोपाल तरे सुहरे हँसि यों तसवीर दिखाई ॥ दोहा--को तेरो यह साँवरो, यो बुझ्यो सखिआय । मुखते कही न बात कछु, रही सुमुखिमुखनाय ॥ अथ दूती लक्षणम् ॥ दोहा-दूतपने मेंही सदा. जो तिय परमप्रवीन । उत्तम मध्यम अधम हैं, मो दूती बिधि तीन २७॥ हरै शोच उचरै बचन, मधुर मधुर हितमानि । सो दूती कही, रस ग्रन्थनमें जानि ॥ २८॥ अथ उत्तमा दूतीको उदाहरण ॥ कवित्त-गोकुलकी गलिन गलिन यह फैली बात, कान्है नन्दरानी वृषभानु भौन व्याहती ॥ कहै पदमाकर यहांई त्यों तिहारो चलै, ब्याहको चलन वहै साँवरो सराहती॥ शोचति कहाहौ कहा करिहैं चवाइनये, आनंदकी अवलीन कहा अवगाहती। प्यारो उपपति तै सुहोत अनुकूल तुम, प्यारी परकीयाते स्वकीया होनबाहती ॥२९॥ 1