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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/७७

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-- जगद्विनोद । तानतुकवालाहैं बिनोदके रसाला हैं, सुबालाहैं दुशालाहैं बिशाला चित्रशालाहैं ॥५७॥ इति श्रीकूर्मवंशावतंस श्रीमन्महाराजाधिराजराजराजेंद्र श्री सवाई महाराज जगत्सिंहाज्ञया मथुरास्थाने मोहनलाल भट्टान्मज कवि पद्माकरविरचित जगद्विनोद नाम काव्ये आलंबन विभाव प्रकरणम् ॥ २ ॥ 7 अथ अनुभव ।। दोहा-जिनहींते रवि भावको, चितमें अनुभव होत । ते अनुभव शृङ्गारके, वर्णत हैं कविगोत ॥१॥ सात्विक भाव स्वभाव धृत, आनंद अंग विकास । इनहींते रतिभावको, परकट होत विलास । अथ अनुभवका उदाहरण.॥ कवित्त-गोरसको लूटिबो न छूटिबो छराकोगनै, टूटिबो गनै न कछू मोतिनके मालको। कहै पदमाकर गुवालिनी गुनीलीहेरि, हरषै हँसयों करै झूठो झूठे ख्यालको ॥ हांकरति नाकरति नेहकी सांकरी गली में रंगराखति रसालको । दीबो दधिदानको सु कैसे ताहि भावत है; जाहि मन भायो झार झगरो गोपालको ॥३॥ दोहा-मृदुमुसकाय उठाय भुज, क्षण घुट उलटारि ॥ कोपनि ऐसी जाहि तू, इकटक रही निहारि ॥४॥ निशा करति,