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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/९५

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जगद्विनोद । (९५) दोहा--अब न धीर धारत बनत, सुरत बिसारीकन्त ॥ पिक पापी पीकन लगे, बगरेउ बागबसन्त॥३६॥ नीति निगम आगमनते, उपजै भलो विचार ॥ ताहीसों मतिकहतहैं, सबग्रन्थनको सार ॥३७॥ अथ मतिका उदाहरण - सवैया ।। बादही बापवदोकेबकैमति बोरदे बंजविषय विषहीको मानिलया पदमाकरकीकही जोहित चाहत आपने जीको । शंभुकेजीवको जीवनमूरि सदा सुखदायकहै सबहीको । रामहीराम कहै रसना कसना तू भजे रमनामसहीको ॥ दोहा--पाछे परन कुसंगके, पदमाकर यहि डोठ ॥ परधन खात कुपेटज्यों, पिटत बिचारीपीठ॥३९॥ जहां कौन हूँ बातकी, चितमें चिन्ताहोय ॥ चिंता तासों कहतहैं, कविको विद मबकोय ॥४०॥ अथ चिंताका उदाहरण ॥ कवित्त--झिलतझकोर रहै यौवनको जो रहै, समद मरोररहै शोर रहै तबसों । कहै पदमाकर तकैयनके मेह रहै, नेह रहै ननन न मेह रहै दषसों । बाजत सुबैन रहै उनमद मैन रहै चित्त न चैन रहै चातकीके रवसों। गहमें न नाथ रहै द्वारे बजनाथ रहै, कपलों मन हाथ रहै साथ रहै सबसों ॥ ४ : ॥