पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१८९

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संवत् १६७०।

ईरानको बिदा हुआ। बादशाहने उसे जड़ाऊ जीनका घोड़ा जड़ाऊ परतला चार कुब्ब सुनहरी कलंगी पर तथा जीगे सहित और तीस हजार रुपये दिये। सब माल चालीस हजार रुपयेका होगा। खानआलमको जड़ाऊ खपवा फूल कटारे सहित जिसमें मोतियोंकी लड़ी लगी थी मिला।

पितृदर्शन।

२२ (आश्विन बदी ३०)को बादशाह पांच हजार रुपये लुटाता हुआ हाथी पर सवार हो अपने पिताके दर्शनको बहिश्ताबाद(१)में गया और पांच हजार रुपये ख्वाजाजहांको फकीरोंको बांटनेके लिये दिये। एतमादुद्दौलाको घर रहा जो जमनाके तट पर था। दूसरे दिन एतकादवांके नये बनाये मकानमें बेगमों सहित ठहरा। उसने जवाहिर और दूसरी उत्तम चीजें भेट कीं जिनमेंसे बादशाह कुछ अपनी रूचिके अनुसार लेकर सायंकालको राजमन्दिरमें आगया।

अजमेरको कूच।

२(२) शाबान २४ शहरेवर (आश्विन सुदी २) चन्द्रवारको सात घड़ी रात गया बादशाहने आगरेसे अजमेरको कूच किया। वह लिखता है कि इस यात्रासे मेरे दो मनोरथथे--एक ख्वाजामुईनुद्दीन चिश्तीके दर्शन करना जिनकी आत्माके प्रतापसे इस घरानेका बहुत कल्याण हुआ है, और मैं तख्त पर बैठनेके पीछे यह पुण्य प्राप्त न कर सका था, दूसरे राणा अमरसिंहका सर करना, जो हिन्दुस्थानके मुख्य राजोंमेंसे है और जिसको सरदारी और बड़ाईको इस विलायतके राजा और राव सब मानते हैं। बहुत दिनसे राज्य और ऐश्वर्य्य इसके घरानेमें चला आता है। पहले पूर्व दिशा में


(१) सिकन्दरा जहां अकबरकी समाधि है।

(२) चण्डू पञ्चांगकी गणितसे १ शाबान, मगर मुसलमानी मत से रातको २ ही थी।