पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२०४

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जहांगीरनामा।

जहाँ वहुत लोग आते जाते। बन जानेके पीछे मैं गुरुवार और शुक्रवारको वहुधा वहीं रहता है। मैंने कवियोंको प्रशस्ति लिखनेको आज्ञा को तो भूषणागारको कर्मचारी गईदाय गोलानीने जो प्रशस्ति भेट को वही मैंने पत्थर पर खुदवाकर नीचे के भवन पर लगवादी ।(१)

अनार और खरबूजे।

माघ महीने के लगतेही विलायतले व्यापारी आये और यज्द(२) के अनार और कोरेज(३) के खरबूजे लाये जो खुरामानके देश सर्वोत्तम होते हैं। बादशाह लिखता है-"दरगाहके मव बन्दा और सीमा प्रान्तके अमौरोंने इस मैवेका हिस्सा पाकर परमेश्वरका धन्यवाद किया। अबतक मुझको उत्तम अनार और खरबूजे नहीं मिले थे। यों तो वर्षभर बदखशांमे खरबूजे और कावुलसे अनार आया करते हैं पर वह यजदके अनार और कारेजके रखरवजोंके ममान नहीं होते। मेरे पिताको मेवेको बहुन रुचि थी मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि यह मेवे उनके समयमें नहीं आये। आत तो वह बहुत प्रसन्न होते।

जहांगीरी अतर।

ऐसाही अफसोस मुझे अतर जहांगौरीका भी है कि जो उनके सूंघने में नहीं आया। यह अतर मेरै राज्यमें नूरजहां वेगमको माके


(१) यह स्थान प्रशस्ति सहित नूरचशममें अब भी है। झालग और फव्वारा टूट गया है। तीस वर्ष पहले अंगरेजी सरकार मे कुछ मरम्मत हुई थी पर न अब वैसी घटा है न वह पानी है। न फव्वारा चलता है न चादर गिरती है। सब मकान मूने और उजड़े पड़े हैं। नूरचश्मेको जामनें मशहूर थीं अब कई वर्षसे अच्छी वर्षा न होनेसे वह भी वैसी नहीं होती।

(२)'यज्द' ईरानमें एक पुराना प्रदेश है।

(३) कारेज, हिरातमें खरबूजोंके खेत हैं हिरात अब काबुलके राज्य में है।