जंवत् १६७४। २८५ rrrrrrrrrrrrrrrrr ... चाग्दो नोजेके टके। यहां बादशाहगे चान्दो मोके उ चलाये। जिनका तोल जालौ रुपवी और मोहरोंसे दूना था। सोनेको टोले एक ओर जहांगीरशाही, सन १०२७ और दूमरो गोर जवखंभात खन १२ जिलूच जुदा था। चांदौके टको में एक तरफ जहां गौरशाही, सन १०२७ और उसकी जपर गोलाकार एक पन्य खुदा था जिसका यह अथ था-- विजय प्रकाशका जहांगीरने चांदौके ऊपर यह काप मारी। और दूसरी तरफ बीचमें जबखंभात सन १२ जिलूस और उसके ऊपर गोलाईमें यह दूसना पद्य था- जबकि दक्षिण जीतकर मंडूसे गुजरात में पाया। बादशाइ लिखता है-"भरे सिवा किमो समय भी टके पर सिका नहीं लगा था चांदी और सोनका टका मेराही निकाला हुआ है।” मेट। १४ गुरुवार (पौष सुदी ८) को बन्दर रवंभातके कर्मचारी अमानतखांकी भेट हुई। उसका मनसब कुछ बढ़कर डेढ़ हजारो जात और चारसौ सवारोंका होगया। हाथीको दौड़। १५ शुक्रवार (पौष मुदी ८.) को बादशाहने सवार होकर नूर- बख्त हाथीको घोड़के पीछे दौड़ाया। बहुत अच्छा दौड़ा। जब ठहराया तो झट खड़ा होगया। बादशाह लिखता है मेरी यह सवारी तीसरी बार यो।। रामदास । १६ शनिवार (पौष सुदी १०) को जयसिंहके बेटे रामदास * . * रामसिंह आमेरके राजा जयसिंहका बेटा था अगर वह तो संवत् १६८२ में पैदा हुआथा । यह रामदास राजा राजसिंहका बेटा होगा यहां गलतीसे राजसिंहको जगह जयसिंह लिखा गया है ऐसा जाना जाता है। । ..