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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०३

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हानीकारक शिक्षा के कारण, अंपढ़, कर्कशा, मैखी, कटुभाषियी और कलह कारणी होते हुए भी केवल इसलिये अपने को उच्च जाति की समझती है कि अज्ञानी लोग उसके निरक्षर पिता को ब्राह्मया या दूध बेचने वाले पिता को त्रिप नाम से पुकारते हैं, और वह अपनी अशिष्टता, असभ्यता और झूठे अभिमान के कारण अपनी सुशिक्षिता, सुसभ्या, मृदुभाषिणी गुणवती देवरानी को केवल इसलिये घृष्णा मे देखती और उसके साथ बैठना पसंद नहीं करती, क्योंकि आप-जैसे धर्मध्वजी उस सुशिक्षिता देवी के विद्वान् और सदाचारी पिता को अपने जन्म-मूलक कुसंस्कारों और बुद्धि-हीनता के कारण नाई या कहार कहकर नीच समझते है, तो इसमें दोष उस जेठानी का है न कि उस जाति-पाँति-तोड़क जोड़े का। दंडनीय वह दुष्टा जेठानी है न कि वह सुसभ्या देवरानी। पाराशरी और दारीत आदि में तो गुणवती चांडाल-कन्या के साथ भी विवाह करने की आज्ञा है। वहाँ साफ़ लिखा है कि कन्या को छोड़कर चांडाल की शेष सब चीज़ें और पुत्र अपवित्र होते हैं। फिर जो लाेग जाति-पाँति के भीतर विवाह करते हैं क्या थे एक दूसरे से अलग नहीं होते, क्या वे जायदादें नहीं फूँकते, क्या वे एक दूसरे से मुकद्दमेबाजी में पारिवारिक शांति का नाश नहीं करते? यदि जेठानी छोटी जाति की देवरानी के साथ मिलकर कुल-देवता की पूजा नहीं कर सकती, तो वह ऐसे कुल देवता को अपने पास रक्खे। क्या आजकल एक ही परिवार में एक सनातनधर्मी, दूसरा आर्यसमाजी, तीसरा राधास्वामी, चौथा ब्राह्मो और पाँच सिक्ख नहीं होता? क्या आप उन सबको घर से निकाल देंगे? देवरानी अपना अलग देव-पूजन कर सकती है। ऐसी उजड्ड जेठानी के साथ बैठने की उसे ज़रूरत ही क्या है? मूर्ख संबंधी से तो साँप अच्छा। कितनी लजा की बात है कि आप अंतरजातीय विवाह करनेवालों को कुकर्मी और लूसे