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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०८

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संतान का विवाह करते, तो अंतरजातीय विवाहों का खू़ब हव प्रचार हो गया होता। पर इसका यह मतलब कदापि नहीं कि जो काम पिता, किसी रुकावट या कठिनाई के कारण, नहीं कर सका उसे पुत्र भी न करे। यदि आपके विरोध से अब श्रीरबींद्रनाथ भी जाति-पाँति को उड़ाने में क्रियात्मक पग न उठा सके, तो कल आप उनकी संतान को भी कहेंगे कि तुम्हारे पिता ने जाति-पाँति को न मानते हुए भी जाति-पाँति नहीं तोड़ी, तो तुम अब क्यों तोड़ते हो? क्या तुम उससे अधिक योग्य हो?

आक्षेप—जाति-पाँति-तोड़क विवाहों से जो संताम उत्पन्न होगी, उसकी नई मूर्ख जातियों में श्रेष्ठता और उच्चता के लिये द्वेष और लड़ाई होगी, क्योंकि इस समय ऐसा कोई नियम नहीं, जिससे इस जाति-पाँति-तोड़क विवाहों की संतानों की जातियों का निश्चय किया जा सके, यद्यपि ये सब अंत्यज समझी जायेंगी। मिश्र-विवाहों की संतान के उनके माता-पिता की जाति से नीचा गिना जाने के कारणी ही इतनी उप-जातियाँ पैदा हो गई हैं।

उत्तर—जाति-पाँति-तोड़क लोग कोई नई जातियाँ नहीं पैदा करने जा रहे। वे तो जाति-पाँति का समूल नाश चाहते हैं। जब कोई जाति ही नहीं होगी, तो उसके ऊँची या नीची होने का प्रश्न ही कैसे पैदा होगा? मनुष्य जो काम करेगा, वही कहलायगा। जब उससे पूछा जायगा कि तुम कौन हो, तो वह कहेगा, मैं हिंदू, आर्य समाजी, सिक्ख, जैन या ब्राह्म; डॉक्टर, लोहार, वकील, व्यापारी या मजदूर हैं। बस जाति की जरूरत ही क्या है? किसी चीनी या फ्रांसीसी से पूछिए कि तुम ब्राह्मण हो या खत्री, तो वह आपको जो उत्तर देगा, वही जाति-पाँति के बंधन से मुक्त हिंदू दे सकेगा।

आक्षेप—यदि किसी श्रेणी के लोगों के अंतरजातीय विवाह