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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/११२

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जन्म-मूलक श्रेष्ठता स्वीकार करने को बिलकुल तैयार नहीं। उन्होंने अब सारे अनिष्ठ की मूल जाति-पाँति को मिटा देने का दृण निश्चय कर लिया है। उनमें आत्म-सम्मान-आंदोलन बड़े ज़ोर से चल रहा है। अब कोई भी शक्ति जाति-पाँति को सुरक्षित न रख सकेगी। उन करोड़ों दुखित शूद्रों और अछूतों की फूँक से जाति-पाँति इस तरह लड़ जायगी जैसे आँधी के सामने पीपल का सूखा हुआ पत्ता। यही कारण है जो श्री° अमृतलाल राय-जैसे सनातनधर्मी जाति-पति की मृत्यु पर इतना विलाप करने लगे हैं। अब जाति-पाँति-तोड़क विवाहों की संतान को अपनी पैतृक संपत्ति से वंचित्त होने का भी डर नहीं। क्योंकि सिविल मैरिज ऐक्ट या डॉक्टर गौड़ के मैरिज ऐक्ट के अनुसार जाति-पाँति-तोड़क विवाह रजिस्ट्री हो सकता है और उसकी संतान कानून की दृष्टि में अपने माता-पिता की संपत्ति की जायज़ वारिस समझी जाती है। अब तक अंतरजातीय विवाहों का प्रचार नहीं होता और जब तक हिंदू जन्म-मूलक जाति-पाँति की जंजीरों में बँधे हुए हैं, तब तक अछूतोद्वार, शुद्धि, संगठन, वरन् स्वराज्य भी सर्वथा असंभव है। इसलिये प्रत्येक देश-हितैषी का कर्तव्य है कि जाति-पाँति का समूल नाश करने में तन, मन और धन मे मंडल की सहायता करे, तभी हिंदू-समाज और भारत-जननी का कल्याण होगा।