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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१६१

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नम्र-निवेदन

नम्र निवेदन

अब अन्त में मैं पाठक महानुभावों से सविनय प्रार्थना करता हूं कि यदि आपकी इच्छा है कि भारतनिवासी आर्य विद्या-बुद्धि-सम्पन्न हां, धन-धान्य से पूर्ण हों, यशस्वी और बलवान् बनें, वही सुख शान्ति प्राप्त करें जो महाभारत से पूर्व हमारे पुरुषाओ को प्राप्त थी, जगत्-गुरु की खोई हुई उपाधि फिर से प्राप्त करें, स्वतंत्रता का स्वर्गीय सुख भोगे, परमपिता परमात्मा के प्यारे और सच्चे भक्त बनें तो आपका यह पहला कर्तव्य होना चाहिये कि आप इस कल्पित जाति- बंधन को तोड़ कर चकनाचूर कर डालें । अपने मन से इस बहम को सदा के लिये निकाल डालें। यदि आपने यह क़िला तोड़ लिया तो आप देखेंगे कि ऋद्धि, सिद्धि, विजय, लक्ष्मी, सुख, शान्ति, विद्या, बुद्धि, सम्पत्ति, कीर्ति सव की सब आप के आगे हाथ बाँधे खड़ी हैं । डरो मत, हिम्मत से काम लो । परमात्मा पवित्र काम में अवश्य सहायता देते हैं। परन्तु उसको, जो कुछ करता है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हे परमदयालु, सर्वशक्तिमान् सर्वान्तयमी ! हम सबको सुबुद्धि प्रदान कीजिए और कल्याण-मार्ग पर चलाइए ।

ओ३म् शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

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