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जीवतत्वशास्त्र और वर्ण-भेद

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जीवतत्वशास्त्र और वर्णभेद

वर्ग-भेद-रूपी दुर्ग की रक्षा के लिए कुछ लोग जीवत्व- विज्ञान की खाई तैयार किये बैठे हैं। वे कहते हैं कि वर्ण-भेद का उद्देश्य रक्त की पवित्रता और वंश की विशुद्धता को बनाये रखना था। अब मानव-वंश-विज्ञान के पण्डितों का मत है कि विशुद्ध वंश के मनुष्य कहीं भी नहीं पाये जाते; संसार के सभी भागों में सभी वंशों की आपस में मिलावट हो गयी है। श्रीयुत डी॰ आर० भाणडारकर ने अपने 'हिन्दु प्रजा में विदेशी तत्व ( Foreign Elements in the Hindu Population ) नामक लेख में कहा है कि “भारत-में शायद ही कोई श्रेणी या वर्ण ऐसा होगा, जिस में विजातीय अंश न हो। विदेशी रक्त का मिश्रण न केवल लड़ाकू श्रेणियों-राजपूत और मराठों में ही है, वरन् ब्राह्मणों में भी हैं, जो कि इस धोखे में है कि हम में कोई विजातीय रक्त नहीं मिला।

यह नहीं कहा जा सकता कि वर्ण-भेद वंश के मिश्रण को रोकने या रक्त की शुद्धता को बनाये रखने का साधन था । सचाई यह है कि वर्ण-भेद भारत की भिन्न-भिन्न जातियों के रक्त और संस्कृति के आपस में मिश्रित हो जाने के बहुत देर बाद प्रकट हुआ था । यह समझना कि वर्ण का भेद वास्तव में वंशों का भेद है और विभिन्न वर्गों को उतने ही विभिन्न वंश या कुले समझना सच्ची बातों को बहुत बुरी तरह से विगाड़ना है । पञ्जाब के ब्राह्मणों में और मद्रास के ब्राह्मणों में क्या वंश-सम्बन्ध है ? बङ्गाल के अस्पृश्यों में और मद्रास के अस्पृश्यों में वंश ( race ) का क्या रिश्ता है ?