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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/७९

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भारत में जाति-भेद, निस्सन्देह मूलतः हिन्दुओं के ही भीतर से निकली हुई गन्दी भड़ास है। इस ने सब कहीं वायुमण्डल को दूषित कर दिया है और मिक्ख, मुसलमान, ईसाई सब में इस का विष फैल गया है। इस लिए लाहौर का जात-पाँत तोड़क मण्डल सिक्ख, मुसलमान और ईसाई आदि उन सब लोगों की भी सहायता का पात्र है ज़िन में संसर्ग-दोष से यह जात-पाँत का रोग फैल गया है। मण्डल का काम एक राष्ट्रीय काम है,परन्तु यह दूसरे राष्ट्रीय कीम, अर्थात् स्वराज्य से कहीं अधिक कठिन है । स्वराज्य के संग्राम में जब आप लड़ते हैं तो सारा राष्ट्र आप के पक्ष में होता है । परन्तु इस काम में ,मण्डल को सारे राष्ट्र के विरुद्ध लड़ना पड़ता है और वह राष्ट्र भी कोई दूसरा नहीं, अपना ही है । परन्तु यह काम स्वराज्य से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । स्व- राज्य लेने से कुछ लाभ नहीं,यदि हम उस की रक्षा नहीं कर सकते । स्वराज्य की रक्षा करने के प्रश्न से भी अधिक महत्वपूर्ण बात स्वरा- ज्य में हिन्दुओं की रक्षा करने का प्रश्न है । मेरी सम्मति में हिन्दू- समाज के जाति-भेद के महारोग से छुटकारा पाने के बाद ही उसमें अपनी रक्षा के लिए पर्याप्त शक्ति आने की आशा की जा सकती है। इस भीतरी शक्ति के बिना, डर है कि स्वराज्य हिन्दुओं के लिए दासती की ओर एक पग मात्र ही सिद्ध न हो ।

इति